भेद विदित का
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
आज द्रोपदी खंड बनी सी,
खड़ी सभा के बीच निशब्दा।
नयन सभी के झुके झुके थे,
डरे डरे थे सोच आपदा।
लाल आँख निर्लज्ज दुशासन
भीग स्वेद से खौल रहा था
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
ढेर चीर का पर्वत जैसा,
लाज संभाले हरि जयंता।
द्रुपद सुता के हृदय दहकती,
अनल अबूझ अनंत अनंता।
सखा कृष्ण अगाध थी निष्ठा,
तेज दर्प सा घोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
कुसुम कोठारी।
झर झर बरसे मोती अविरल
नेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
आज द्रोपदी खंड बनी सी,
खड़ी सभा के बीच निशब्दा।
नयन सभी के झुके झुके थे,
डरे डरे थे सोच आपदा।
लाल आँख निर्लज्ज दुशासन
भीग स्वेद से खौल रहा था
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
ढेर चीर का पर्वत जैसा,
लाज संभाले हरि जयंता।
द्रुपद सुता के हृदय दहकती,
अनल अबूझ अनंत अनंता।
सखा कृष्ण अगाध थी निष्ठा,
तेज दर्प सा घोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
कुसुम कोठारी।
सुन्दर गीत
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी 👌
Deleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन होता है।
Deleteवाह बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह आभार ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-03-2020) को 'ये लोग देश हैं, देशद्रोही नहीं' ( चर्चाअंक - 3656) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आपका।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपका।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ।
Deleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' ०१ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
जी बहुत बहुत आभार ,मैं अभिभूत हूं ।
Deleteसादर।
ढेर चीर का पर्वत जैसा,
ReplyDeleteलाज संभाले हरि जयंता।
द्रुपद सुता के हृदय दहकती,
अनल अबूझ अनंत अनंता।
सखा कृष्ण अगाध थी निष्ठा,
तेज दर्प सा घोल रहा था।
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब नवगीत
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
ReplyDeleteसस्नेह।
आज द्रौपदी खंड बनी सी ,बहुत सुंदर सृजन सखि
ReplyDeleteलाज़वाब सृजन
ReplyDeleteझर झर बरसे मोती अविरल
ReplyDeleteनेत्र दृश्य कुछ तोल रहा था।
मूक अधर शरीर कंपित पर
भेद विदित का डोल रहा था।
वाह वाह
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन दीदी जी
अति सुंदर सृजन दीदी👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत है दी।
ReplyDeleteभाव और शब्द संयोजन अति उत्तम सदा की भाँति।
सार्थक संदेश प्रेषित करती सराहनीय रचना।
वाह! बहुत ही मार्मिक नवगीत है आदरणीया कुसुम दीदी. द्रौपदी की पीड़ा और परिस्थितियों को आपने हृदयस्पर्शी भावों में गूँथा है.
ReplyDeleteशब्द-शब्द में जादू बिखेरती रचना.
सादर स्नेह
द्रोपदी के चीरहरण का असहनीय दृश्य जीवंत करता नवगीत मर्मान्तक पीड़ा की पराकाष्ठा को भाव गाम्भीर्य के साथ अभिव्यक्त करता है। घटना प्रधान सृजन अपने आप में विशिष्ट श्रेणी में शुमार हो जाता है। सभा में उपस्थित महावीरों के लिये तत्कालीन समय में वचन की मर्यादा का पालन सर्वोपरि था न कि स्त्री की गरिमा।
ReplyDeleteशानदार सृजन के लिये आपको बधाई।
बहुत ही सुंदर गीत सखी 👌👌👌 उत्तम भाव और कथन 👌👌👌बहुत बहुत बधाई 💐💐💐
ReplyDeleteलाजवाब सृजन मीता
ReplyDeleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' २२ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_22.html
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'कैनवास में आज कुसुम कोठारी जी की रचनाएँ' (चर्चा अंक-3740) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
वाह! बहुत सुंदर रचना।
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