गीत।
श्वास रहित है तन पिंजर
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने
गोकुल छोड़़ जावन कहे
बात नेह की कब माने।
अमर लतिका स्नेह लिपटी
छिटक दूर क्यों कर जाए।
बिना मूल मैं तरु पसरी
जान कहां फिर बच पाए।
श्वास रहित है तन पिंजर
साथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
बिना चाँद चातक तरसे
रात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता।
कौन सुने खर जग सारा।
बात बात देता ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
कुसुम कोठारी।
श्वास रहित है तन पिंजर
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने
गोकुल छोड़़ जावन कहे
बात नेह की कब माने।
अमर लतिका स्नेह लिपटी
छिटक दूर क्यों कर जाए।
बिना मूल मैं तरु पसरी
जान कहां फिर बच पाए।
श्वास रहित है तन पिंजर
साथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
बिना चाँद चातक तरसे
रात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता।
कौन सुने खर जग सारा।
बात बात देता ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
कुसुम कोठारी।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी धन्यवाद आदरणीय।
Deleteरचना को चर्चामंच पर ले जाने के लिए सादर आभार
मैं चर्चा पर हाजिर रहूंगी।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 26 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteपाँचलिंक पर रचना को रखने के लिए हृदय तल से आभार।
मैं जरूर उपस्थित रहूंगी।
तड़प मीन की मन मेरे
ReplyDeleteश्याम नही अंतर जाने
गोकुल छोड़़ जावन कहे
बात नेह की कब माने
नारी मन की वेदना को अभिव्यक्ति देती मार्मिक रचना प्रिय कुसुम बहन | मानों श्याम सखी के अंतर्मन में झांक लिया अआपने | चहुँ दिशी नजर दौडाती एक प्रेम पीडिता और सोच भी क्या सकती है ? हृदयस्पर्शी रचना के लिए बधाई | नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं| सस्नेह
बहुत बहुत स्नेह आभार रेणु बहन।
Deleteआपने रचना के भावों को मुखरित कर रचना को सजीव कर दिया इतनी सुंदर आपकी व्याख्या होती है लेखन सार्थक हो जाता है।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार।
वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुभा जी ।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
सस्नेह।
नेह से भरी अद्भुत एवं लाजवाब कृति।
ReplyDeleteअमर लतिका स्नेह लिपटी
छिटक दूर क्यों कर जाए।
बिना मूल मैं तरु पसरी
जान कहां फिर बच पाए।
वाह!!!!