Followers

Wednesday, 25 March 2020

श्वास रहित है तन पिंजर

गीत।
श्वास रहित है तन पिंजर

तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने
गोकुल छोड़़ जावन कहे
बात नेह की कब माने।

अमर लतिका स्नेह लिपटी
छिटक दूर क्यों कर जाए।
बिना मूल मैं तरु पसरी
जान कहां फिर बच पाए।

श्वास रहित है तन पिंजर
साथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।

बिना चाँद चातक तरसे
रात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता।

कौन सुने खर जग सारा।
बात बात देता ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।

कुसुम कोठारी।

9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद आदरणीय।
      रचना को चर्चामंच पर ले जाने के लिए सादर आभार
      मैं चर्चा पर हाजिर रहूंगी।

      Delete
  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 26 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      पाँचलिंक पर रचना को रखने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं जरूर उपस्थित रहूंगी।

      Delete
  3. तड़प मीन की मन मेरे
    श्याम नही अंतर जाने
    गोकुल छोड़़ जावन कहे
    बात नेह की कब माने
    नारी मन की वेदना को अभिव्यक्ति देती मार्मिक रचना प्रिय कुसुम बहन | मानों श्याम सखी के अंतर्मन में झांक लिया अआपने | चहुँ दिशी नजर दौडाती एक प्रेम पीडिता और सोच भी क्या सकती है ? हृदयस्पर्शी रचना के लिए बधाई | नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं| सस्नेह

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत स्नेह आभार रेणु बहन।
      आपने रचना के भावों को मुखरित कर रचना को सजीव कर दिया इतनी सुंदर आपकी व्याख्या होती है लेखन सार्थक हो जाता है।
      बहुत बहुत सा स्नेह आभार।

      Delete
  4. वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी ।
      आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  5. नेह से भरी अद्भुत एवं लाजवाब कृति।

    अमर लतिका स्नेह लिपटी
    छिटक दूर क्यों कर जाए।
    बिना मूल मैं तरु पसरी
    जान कहां फिर बच पाए।
    वाह!!!!

    ReplyDelete