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Saturday, 7 March 2020

सर्वार्थ हित क्रीड़ा

सर्वार्थ हित की क्रीड़ा

वैर द्वेष का कारण ढूंढो
देखो निज प्रभुता की ओर।।
भौतिकता की होड़ में अँधा
सदभावों की टूटी डोर।

मन में पाले वैमनस्यता
हाथों में ले चुभते तीर
आँखों में नाखून उगे है
समझें नही किसी की पीर
आदमियों की भीड़ बढी है
मानवता ले भागे मोर।
वैर द्वेष का कारण ढूंढो
देखो निज प्रभुता की ओर।।

खेल रहा हर कोई देखो
स्वार्थ हित साधन की क्रीड़ा
शांति दूत अब दिखना मुश्किल
झेले क्यों किसीकी पीड़ा
चैन औ अमन संग ले गये
बापू की लाठी भी चोर।
वैर द्वेष का कारण ढूंढो
देखो निज प्रभुता की ओर।।

धधक रही  है ज्वाला जैसी
जनता में है हाहाकार
लावा जैसे फूट पड़ा है
डर की आँधी पारावार
धुंधला मेघ घिरा देश पर
अधोगमन की बाजी जोर।
वैर द्वेष का कारण ढूंढो
देखो निज प्रभुता की ओर।।

कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8 -3-2020 ) को " अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस " (चर्चाअंक -3634) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा





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  2. इस भौतिक युग में स्वहित के चश्मे से ही सबकों देखा जाता है और स्वार्थ के तराजू पर हर रिश्ते तौले जाते हैं।
    सुंदर सृजन ,कुसुम दी।

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  3. मन में पाले वैमनस्यता
    हाथों में ले चुभते तीर
    आँखों में नाखून उगे है
    समझें नही किसी की पीर
    आदमियों की भीड़ बढी है
    मानवता ले भागे मोर।
    वैर द्वेष का कारण ढूंढो
    देखो निज प्रभुता की ओर।।
    वाह!!!
    मन को झकझोरने वाला बहुत ही सुन्दर लयबद्ध लाजवाब नवगीत।
    सुन्दर सृजनहेतु बहुत बहुत बधाई कुसुम जी !

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  4. वाह बहुत सुंदर रचना सखी

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