Tuesday, 10 March 2020

मन की गति कोई न जाने

मन की गति कोई न समझे

भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।
मन की गति कोई ना समझे
डोला घूमा हर कण हर कण।


कभी अर्श चढ़ कभी फर्श पर
उड़ता फिरता मारा मारा ।
मीश्री सा मधुर और मीठा
कभी सिंधु सा खारा खारा।
कोई इसको समझ न पाया
समझा कोई हर कण हर कण।।

भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।

कभी दूर तक नाता जोड़े
नज़र अंदाज अपनें होते
गुमसुम किसी गुफा में घूमे
बागों में हरियाली जोते
कैसे कैसे स्वाग रचाए
इसकी आभा हर कण हर कण।

भावना के गहरे भँवर में
डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।।

कुसुम कोठारी।

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर ।

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  2. जीवन की अनुभूतियों की बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति कुसुम जी !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
      सस्नेह।

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3638 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
      मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरूवार १२ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  5. कभी अर्श चढ़ कभी फर्श पर
    उड़ता फिरता मारा मारा ।
    मीश्री सा मधुर और मीठा
    कभी सिंधु सा खारा खारा।
    कोई इसको समझ न पाया
    समझा कोई हर कण हर कण।।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत आभार ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  7. भावना के गहरे भँवर में
    डूबे उभरे पल क्षण पल क्षण।
    मन की गति कोई ना समझे
    डोला घूमा हर कण हर कण।

    बहुत ही सुंदर भावों ,सादर नमन आपको

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    1. ढेर सा आभार कामिनी जी ।
      सस्नेह।

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  8. बहुत अच्छी रचना ,नमस्कार आपको

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    1. आत्मीय आभार आपका।
      सस्नेह।

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  9. वाह बहुत सुंदर नवगीत सखी

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    1. बहुत बहुत आभार सखी।
      सस्नेह।

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