Wednesday, 15 April 2020

मीरा सी प्रीत

मीरा सी प्रीत

मांगी नेह निशानी निष्ठुर
पाहन प्रतिमा कब चाही ।
उड़ते पाखी नील गगन के
बिन जल तड़पे हिय माही ।।

आंखों का ये तेज चीरता
छूवन कठिन शैल प्रस्तर ।
बांध न पाये सांसें सीली
भावों का रिक्त कनस्तर ।
युगों युगों तक पंथ निहारा
रिक्त गागर समय दाही।।

मीरा जैसी प्रीत निभाए
एक मृदा की मूरत से ।
जड़ जंगम में घूमी ललना
बँधी मोहनी सूरत से ।
काँच हृदय पर पत्थर मारा
देश छोड़ छूटा राही ।।

कैसे प्रतिमा प्राण फूंक कर
धुक धुक सी धड़कन भर दे  ।
आँखों की भाषा जो समझें
ऐसा कुछ जादू कर दे ।
या निज को पाषण कर डाले
बन शिला खंड अवगाही ।।

       कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (17-04-2020) को "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?" (चर्चा अंक-3674) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  2. मीरा जैसी प्रीत निभाए
    एक मृदा की मूरत से ।
    जड़ जंगम में घूमी ललना
    बँधी मोहनी सूरत से ।
    काँच हृदय पर पत्थर मारा
    देश छोड़ छूटा राही ।
    वाह!!!
    अद्भुत ....लाजवाब सृजन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी सुंदर प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता देती है ।

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  3. वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर !👌

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    1. बहुत सा सरनेम आभार शुभा जी।

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  4. भावों का कनस्तर- क्या बात है !

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      फर्लांग पर स्वागत है आपका ।
      सदा स्नेह बनाए रखें।

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  5. अदभुत सृजन कुसुम जी ,आपकी रचनाएँ एक अलग सी दुनिया में ले जाती हैं ,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
      सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली।

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  6. भावपूर्ण और सुंदर रचना

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  7. बहुत बहुत आभार आपका।

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  8. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    रचना सार्थक हुई।

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  9. मांगी नेह निशानी निष्ठुर
    पाहन प्रतिमा कब चाही ।
    उड़ते पाखी नील गगन के
    बिन जल तड़पे हिय माही ।।
    अप्रतिम भावाभिव्यक्ति कुसुम जी !

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