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Friday, 28 June 2019

पहली बारिश की दस्तक

पहली बारिश की दस्तक

दस्तक दे रहा, दहलीज पर कोई
चलूं उठ के देखूं कौन है,
कोई नही दरवाजे पर
फिर ये धीरे धीरे मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली
फूल कुछ और खिले खिले
कलियों की रंगत बदली सी
माटी महकने लगी है
घटाऐं काली घनघोर,
मृग शावक सा कुलाँचे भरता मयंक
छुप जाता जा कर उन घटाओं के पीछे
फिर अपना कमनीय मुख दिखाता
फिर छुप जाता
कैसा मोहक खेल है
तारों ने अपना अस्तित्व
जाने कहां समेट रखा है
सारे मौसम पर मदहोशी कैसी
हवाओं में किसकी आहट
ये धरा का अनुराग है
आज उसका मनमीत
बादलों के अश्व पर सवार है
ये पहली बारिश की आहट है
जो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।

         कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. पहली बारीश का मजा ही कुछ और हैं, कुसुम दी। वो मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू...
    बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन सच पहली बारिश हो और लेखनी न मचले हो नही सकता।
      ढेर सा स्नेह मनभावन प्रतिक्रिया आपकी।

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  2. पहली बारिश में हम भी बचपन में नहाते थे। अब वो दौर गाँव से दूर जाते ही छूट गया। सुंदर कविता लिखी है आपने।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नितिश जी मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हेतु।
      ब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है।

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  3. ये पहली बारिश की आहट है
    जो दुआ बन दहलीज पर
    बैठी दस्तक दे रही है
    चलूं किवाडी खोल दूं
    और बदलते मौसम के
    अनुराग को समेट लूं
    अपने अंतर स्थल तक।
    बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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    1. बहुत बहुत स्नेह सखी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।

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  4. बेहतरीन रचना 👌👌दी जी
    प्रणाम
    सादर

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    Replies
    1. ढेर सा स्नेह प्रिय बहना।
      और ढेर सा आभार
      सस्नेह।

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  5. चलूं किवाडी खोल दूं
    और बदलते मौसम के
    अनुराग को समेट लूं
    अपने अंतर स्थल तक।
    वाह 👏 👏
    वर्षा ऋतु में आकर्षण ही इतना है कि लोग उसकी आहट पाने को भी व्याकुल हो जाते हैं

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली और मन को आनंद।
      सस्नेह।

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  6. चहुँ ओर एक भीना सौरभ
    दरख्त भी कुछ मदमाये से
    पत्तों की सरसराहट
    एक धीमा राग गुनगुना रही
    कैसी स्वर लहरी फैली
    फूल कुछ और खिले खिले
    कलियों की रंगत बदली सी
    वर्षा के आगमन का प्रकृति द्वारा मनमोहक स्वागत... अत्यंत मनोरम सृजन कुसुम जी !!

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  7. पहली बारिश .... कई दिनों बाद की पहली बारिश जिसका इंतज़ार सभी को रहता है ... प्राकृति भी करती है जिसका इंतज़ार ... खिलता है उपवन, आते हैं नए रंग ...

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  8. चलूं किवाडी खोल दूं
    और बदलते मौसम के
    अनुराग को समेट लूं
    अपने अंतर स्थल तक।
    ..............बेहद खूबसूरत

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