पहली बारिश की दस्तक
दस्तक दे रहा, दहलीज पर कोई
चलूं उठ के देखूं कौन है,
कोई नही दरवाजे पर
फिर ये धीरे धीरे मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली
फूल कुछ और खिले खिले
कलियों की रंगत बदली सी
माटी महकने लगी है
घटाऐं काली घनघोर,
मृग शावक सा कुलाँचे भरता मयंक
छुप जाता जा कर उन घटाओं के पीछे
फिर अपना कमनीय मुख दिखाता
फिर छुप जाता
कैसा मोहक खेल है
तारों ने अपना अस्तित्व
जाने कहां समेट रखा है
सारे मौसम पर मदहोशी कैसी
हवाओं में किसकी आहट
ये धरा का अनुराग है
आज उसका मनमीत
बादलों के अश्व पर सवार है
ये पहली बारिश की आहट है
जो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।
कुसुम कोठारी।
दस्तक दे रहा, दहलीज पर कोई
चलूं उठ के देखूं कौन है,
कोई नही दरवाजे पर
फिर ये धीरे धीरे मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली
फूल कुछ और खिले खिले
कलियों की रंगत बदली सी
माटी महकने लगी है
घटाऐं काली घनघोर,
मृग शावक सा कुलाँचे भरता मयंक
छुप जाता जा कर उन घटाओं के पीछे
फिर अपना कमनीय मुख दिखाता
फिर छुप जाता
कैसा मोहक खेल है
तारों ने अपना अस्तित्व
जाने कहां समेट रखा है
सारे मौसम पर मदहोशी कैसी
हवाओं में किसकी आहट
ये धरा का अनुराग है
आज उसका मनमीत
बादलों के अश्व पर सवार है
ये पहली बारिश की आहट है
जो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।
कुसुम कोठारी।
पहली बारीश का मजा ही कुछ और हैं, कुसुम दी। वो मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार ज्योति बहन सच पहली बारिश हो और लेखनी न मचले हो नही सकता।
Deleteढेर सा स्नेह मनभावन प्रतिक्रिया आपकी।
पहली बारिश में हम भी बचपन में नहाते थे। अब वो दौर गाँव से दूर जाते ही छूट गया। सुंदर कविता लिखी है आपने।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नितिश जी मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हेतु।
Deleteब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है।
ये पहली बारिश की आहट है
ReplyDeleteजो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।
बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
बहुत बहुत स्नेह सखी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteबेहतरीन रचना 👌👌दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
सादर
ढेर सा स्नेह प्रिय बहना।
Deleteऔर ढेर सा आभार
सस्नेह।
चलूं किवाडी खोल दूं
ReplyDeleteऔर बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।
वाह 👏 👏
वर्षा ऋतु में आकर्षण ही इतना है कि लोग उसकी आहट पाने को भी व्याकुल हो जाते हैं
बहुत बहुत आभार प्रिय सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली और मन को आनंद।
Deleteसस्नेह।
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
ReplyDeleteदरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली
फूल कुछ और खिले खिले
कलियों की रंगत बदली सी
वर्षा के आगमन का प्रकृति द्वारा मनमोहक स्वागत... अत्यंत मनोरम सृजन कुसुम जी !!
पहली बारिश .... कई दिनों बाद की पहली बारिश जिसका इंतज़ार सभी को रहता है ... प्राकृति भी करती है जिसका इंतज़ार ... खिलता है उपवन, आते हैं नए रंग ...
ReplyDeleteचलूं किवाडी खोल दूं
ReplyDeleteऔर बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।
..............बेहद खूबसूरत