Followers

Monday, 3 June 2019

क्षीर समंदर

क्षीर समंदर

बुनती है संध्या
ख्वाबों के ताने
परिंदों के भाग्य में
नेह के दाने।

आसमान के सीने पर
तारों का स्पंदन
निशा के ललाट पर
क्षीर समंदर।

हर्ष की सुमधुर बेला
प्रकृति की शोभा
चंद्रिका मुखरित
समाधिस्थ धरा।

आलोकिक विभा
शशधर का वैभव
मंदाकिनी आज
उतरी धरा पर ।

पवन की पालकी
नीरव हुवा घायल
छनकी होले होले
किरणों की पायल।

  कुसुम कोठारी ।

15 comments:

  1. आसमान के सीने पर
    तारों का स्पंदन
    निशा के ललाट पर
    क्षीर समंदर।.... वाह!! बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपका स्नेह अतुल्य है हमेशा आपकी त्वरित प्रतिक्रिया हौसला बढ़ाती है ढेर सारा स्नेह

      Delete
  2. आलोकिक विभा
    शशधर का वैभव
    मंदाकिनी आज
    उतरी धरा पर ।
    प्रकृति चित्रण में बेमिसाल है आपकी सोच और लेखनी ... अत्यंत सुन्दर रचना कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी मोहक प्रतिक्रिया से मेरी रचना हमेशा गतिमान होती है बहुत बार इच्छा होती है इस आभासी दुनिया से विदा ले लूं पर सच कहूं मीना जी उसी समय आप सा कोई फिर बेड़ी डाल देता है। आप के अतुल्य स्नेह का आभार नही बस स्नेह ढेर सा स्नेह।

      Delete
    2. आपका सृजन मन को सुकून देता है कुसुम जी ! काम की अधिकता हो तो मानती हूँ जिम्मेदारियां समय मांगती है थोड़ा समय विभाजित कर लीजिए अन्यथा यह आभासी दुनिया आपके स्नेह और विद्वता से आपकी स्वयं की निर्मित की हुई है ऐसा ख्याल में भी मत सोचिएगा सस्नेह....

      Delete
    3. बहुत बहुत आभार सखी आपका कथन शीतल फोये सा है।
      सस्नेह।

      Delete
  3. अहा..कितना सुंदर लिखा दी.....👌👌👌
    सुंदर बिंब और समृद्ध लाज़वाब शब्द संयोझन वाह👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. ढेर सा स्नेह श्वेता इतनी मोहक प्रतिक्रिया से रचना को आयाम मिला ।
      सस्नेह।

      Delete
  4. बहुत ही सुंदर ,आप की रचनाओं में कुछ अलग अहसास होते हैं ,सादर नमस्कार कुसुम जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा आभार आपका कामिनी जी मन मोहक सराहना से रचना मुखरित हुई। पर सच कहूं तो ये सब आप ब का अथाह स्नेह है।
      सस्नेह।

      Delete
  5. वा...व्व... बहुत ही सुंदर रचना, कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय बहन आप का स्नेह मिला रचना और भी प्रवाह मान हुई।
      सस्नेह

      Delete
  6. आसमान के सीने पर
    तारों का स्पंदन
    निशा के ललाट पर
    क्षीर समंदर।

    हर्ष की सुमधुर बेला
    प्रकृति की शोभा
    चंद्रिका मुखरित
    समाधिस्थ धरा।....बेहतरीन सृजन दी जी

    ReplyDelete