रिमझिम का संगीत बारिश
रिमझिम का संगीत बारिश
बारिश की बूंदों में
जो सरगम होती
वह तन चाहे ना भिगोती
पर मन भिगो देती ।
प्यासी कई मास से
विरहन जो धरा थी
आज मिला बूंदों सा मन मीत
धरा के अंग जागा अनंग ।
ढोलक पर बादल की थाप थी
रिमझिम का संगीत था
आज धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।
कुसुम कोठारी ।
वाह ,कुसुम जी बहुत सुंदर बरखा गीत ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी सराहना से रचना को सार्थकता मिली ।
Delete
ReplyDeleteढोलक पर बादल की थाप थी
रिमझिम का संगीत था
आज धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।
बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।
बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा अंक के लिए मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
Deleteढोलक पर बादल की थाप थी
ReplyDeleteरिमझिम का संगीत था
आज धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।
बहुत ही प्यारी मनभावन रचना सखी 👌
बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteमैं बारीश हूँ बुंद बुंद जलसे जीवन सिखाने आयी हूँ ।
ReplyDeleteमैं बारीश हु , बचपण की यादोनको सजाने आयी हूँ ।
दादा पाटील
बहुत बहुत आभार आपका प्रोत्साहन मिला।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए हृदय तल से आभार ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।