Thursday, 27 June 2019

रिमझिम का संगीत बारिश

रिमझिम का संगीत बारिश

बारिश की बूंदों में
        जो सरगम होती
वह तन चाहे ना भिगोती
      पर मन भिगो देती ।

प्यासी कई मास से
       विरहन जो धरा थी
आज मिला बूंदों सा मन मीत
   धरा के अंग जागा अनंग ।

ढोलक पर बादल की थाप थी
     रिमझिम का संगीत था
       आज  धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।

          कुसुम  कोठारी ।



13 comments:

  1. वाह ,कुसुम जी बहुत सुंदर बरखा गीत ,सादर नमस्कार

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी सराहना से रचना को सार्थकता मिली ।

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  2. ढोलक पर बादल की थाप थी
    रिमझिम का संगीत था
    आज धरती के पास
    उसका साजन मन मीत था ।
    बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।

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    1. बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन ।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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    1. चर्चा अंक के लिए मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

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  4. ढोलक पर बादल की थाप थी
    रिमझिम का संगीत था
    आज धरती के पास
    उसका साजन मन मीत था ।
    बहुत ही प्यारी मनभावन रचना सखी 👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।

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  5. मैं बारीश हूँ बुंद बुंद जलसे जीवन सिखाने आयी हूँ ।
    मैं बारीश हु , बचपण की यादोनको सजाने आयी हूँ ।
    दादा पाटील

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रोत्साहन मिला।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए हृदय तल से आभार ।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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