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Saturday, 16 January 2021

विपन्नता


 विपन्नता


नारों से कब पेट भरेगा

छोड़ो अब तो दुर्जनता

जनता भोग रही दुख कितने

कारण है बस विपन्नता।


हाहाकार मचा है भारी

नैतिकता की डोर सड़ी

उठा पटक में बापूजी की

ले भागा है  चोर छड़ी

ऐसे भारत के सपने कब

बनी विवशता अभिन्नता ।।


साधन नही पर्याप्त मात्रा

रस्सा कस्सी मची हुई

अपनी अपनी रोटी सेके

सिद्धांतों पर चढ़ी जुई

मरे भूख से जीव तड़पते

एक शाप है निर्धनता।।


दशानंन सी लिप्सा जागी

मानवता का भाव दहा 

प्रचण्ड विषाणु ऐसा आया

दानवता बस दिखा रहा 

शापित सी हर राह हुई है

गली गली में निर्जनता ।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

23 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आपका,पाँच लिंक में रचना को रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  2. वाह!!!!
    विपन्नता पर बहुत सटीक सुन्दर लाजवाब नवगीत।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सदा प्रवाह मिलता है और मुझे लिखने की उर्जा।
      सस्नेह।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  6. लाजवाब !!
    मंत्रमुग्ध करता अप्रतिम सृजन ।

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    Replies
    1. आपकी मोहक प्रतिक्रिया सदा मेरा उत्साह वर्धन करती है,मीना जी सस्नेह आभार आपका।

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  7. हृदयस्पर्शी सृजन सखी।

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  8. नारों से कब पेट भरेगा
    छोड़ो अब तो दुर्जनता
    जनता भोग रही दुख कितने
    कारण है बस विपन्नता।

    वर्तमान को आईना दिखाती बेहतरीन रचना...🌹🙏🌹

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    1. रचना के भावों को समर्थन देती सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई , बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  9. सोचने को विवश करती हुई बहुत सुन्दर रचना।

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    1. आपका विशेष ध्यान आकर्षित कर पाई आदरणीय, रचना को नये आयाम मिले।
      सादर।

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  10. विडंबना भी तो यही है कि जीव भूख से तड़प कर भले दम तोड़ दे पर कुछेक को सिर्फ अपनी ही रोटी सेकनी होती है

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    1. रचना में निहित भावों पर विशेष टिप्पणी से रचना के भाव स्पष्ट हुए।
      बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।

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  11. सुंदर और सार्थक रचना। बधाई और आभार।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
      प्रबुद्ध समर्थन रचना को सार्थक कर गया।
      सादर।

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  12. Replies
    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई आदरणीय।
      सादर आभार आपका।

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  13. बहुत बहुत आभार आपका।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

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