चार क्षणिकाएं ~ मेरी भावना
भोर की लाली लाई
आदित्य आगमन की बधाई ।
रवि लाया एक नई किरण
संजोये जो सपने हो पूरण
पा जायें सच में नवजीवन
उत्साह की सुनहरी धूप का उजास
भर दे सबके जीवन मे उल्लास ।
साँझ ढले श्यामल चादर
जब लगे ओढ़ने विश्व!
नन्हें नन्हें दीप जला कर
प्रकाश बिखेरो चहुँ ओर
दे आलोक हरे हर तिमिर
त्याग अज्ञान मलीन आवरण
पहन ज्ञान का पावन परिधान ।
मानवता भाव रख अचल
मन में रह सचेत प्रतिपल
सह अस्तित्व समन्वय समता
क्षमा सजगता और परहितता
हो रोम रोम में संचालन
हर प्राणी पाये सुख आनंद
बोद्धित्व का हो घनानंद।
लोभ मोह जैसे अरि को हरा
दे जीवन को समतल धरा
बाह्य दीप मालाओं के संग
प्रदीप्त हो दीप मन अंतरंग
जीवन में जगमग ज्योत जले
धर्म ध्वजा सुरभित अंतर मन
जीव दया का पहन के वसन
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, मुखरित मौन पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
सुंदर संदेश पूर्ण एवं जीवन से ओतप्रोत क्षणिकाएं..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-01-2021) को ♦बगिया भरी बबूलों से♦ (चर्चा अंक-3942) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteचर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'जी 🌹🙏🌹
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर।