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Friday, 1 January 2021

नारी काम पड़े तलवार


 आल्हा छंद आधारित गीत


नारी काम पड़े तलवार


नारी को मत समझो कोमल

काम पड़े बनती तलवार

संबल बनती दीन दुखी की

खल दुर्जन पर करती वार।


चंदन बन महकाती है तो

ज्वाला सी दहकाती फाग 

चंदा की शीतलता उसमें

सूरज जैसी जलती आग

प्रेम रखो तो सबसे न्यारी 

दुष्ट जनो से रखती खार।।


आंख उठे जो ले बेशर्मी

उन आँखों से नोचे ज्योत

बन कर दुर्गा सी संहारक

पापी जन की बनती मौत

शंभू सा ताण्ड़व कर सकती

काली जैसे काल सवार।। 


शोणित नाश करें कंसों का

धारण कर वो अम्बा रूप

जाग उठी है जो थी निर्बल 

तोड़ चुकी वो गहरे कूप

बोझ उठाती धरती जैसे

और किसी पर कब वो भार।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

6 comments:

  1. नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (03-01-2021) को   "हो सबका कल्याण"   (चर्चा अंक-3935)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    नववर्ष-2021 की मंगल कामनाओं के साथ-   
    हार्दिक शुभकामनाएँ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. बहुत सुंदर रचना।

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  4. आदरणीया कुसुम कोठरी जी,

    आल्हा की तर्ज़ पर रची गई आपकी कविता नारी सम्मान में श्रीवृद्धि तो कर ही रही हैं, वीर रस की भावना को जागृत करने में भी समर्थ हैं।
    साधुवाद एवं
    हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻🌺🙏🏻
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  5. पराक्रम,प्रेम,शक्ति,न्याय,प्रताप एवं प्रभाव आदि भावों का सुंदर समायोजन करती हुई नारी रूप अत्यंत विशिष्ट है । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  6. मंत्रमुग्ध करती प्रभावशाली लेखन व अभिव्यक्ति।

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