आल्हा छंद आधारित गीत
नारी काम पड़े तलवार
नारी को मत समझो कोमल
काम पड़े बनती तलवार
संबल बनती दीन दुखी की
खल दुर्जन पर करती वार।
चंदन बन महकाती है तो
ज्वाला सी दहकाती फाग
चंदा की शीतलता उसमें
सूरज जैसी जलती आग
प्रेम रखो तो सबसे न्यारी
दुष्ट जनो से रखती खार।।
आंख उठे जो ले बेशर्मी
उन आँखों से नोचे ज्योत
बन कर दुर्गा सी संहारक
पापी जन की बनती मौत
शंभू सा ताण्ड़व कर सकती
काली जैसे काल सवार।।
शोणित नाश करें कंसों का
धारण कर वो अम्बा रूप
जाग उठी है जो थी निर्बल
तोड़ चुकी वो गहरे कूप
बोझ उठाती धरती जैसे
और किसी पर कब वो भार।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।
नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (03-01-2021) को "हो सबका कल्याण" (चर्चा अंक-3935) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नववर्ष-2021 की मंगल कामनाओं के साथ-
हार्दिक शुभकामनाएँ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआदरणीया कुसुम कोठरी जी,
ReplyDeleteआल्हा की तर्ज़ पर रची गई आपकी कविता नारी सम्मान में श्रीवृद्धि तो कर ही रही हैं, वीर रस की भावना को जागृत करने में भी समर्थ हैं।
साधुवाद एवं
हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻🌺🙏🏻
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
पराक्रम,प्रेम,शक्ति,न्याय,प्रताप एवं प्रभाव आदि भावों का सुंदर समायोजन करती हुई नारी रूप अत्यंत विशिष्ट है । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करती प्रभावशाली लेखन व अभिव्यक्ति।
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