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Tuesday, 5 January 2021

निसर्ग मनोहर


 चौपाई छंद आधारित गीत।


निसर्ग मनोहर

चंदन वन महके महके से

पाखी सौरभ में बहके से

लिपट व्याल बैठे हैं घातक

चाँद आस में व्याकुल चातक।।


रजनी आई धीरे धीरे

इंदु निशा का दामन चीरे

नभ पर सुंदर तारक दल है

निहारिका झरती पल पल है।।


निशि गंधा से हवा महकती 

झिंगुर वाणी लगे चहकती

नाच रही उर्मिल उजियारी

खिली हुई है चंपा क्यारी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

20 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  2. Replies
    1. जी आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  3. वाह.....बहुत सुन्दर प्रिय कुसुम

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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    1. लेखन को सदा नवीन ऊर्जा मिलती है जब चर्चा में रचना शामिल होती है।
      हृदय तल से आभार।

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  5. प्राकृति के सुन्दर रूप को बाखूबी उतारा है शब्दों में ...
    बहुत खूब ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखन में नव उर्जा का संचार करती है।
      सादर।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  7. अतिसुन्दर रचना।
    सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

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  8. Replies
    1. सादर आभार आपका आदरणीय।
      आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से नव प्रयोग पर उत्साहवर्धन होगा।
      सादर।

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  9. बहुत खूब अप्रतिम

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।

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  10. बहुत बढ़िया।
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यावाद। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका,ब्लाग पर आपका सदा इंतजार रहेगा।
      आपके ब्लॉग पर सुंदर अनुभव ।
      सस्नेह।

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