ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती मे झुमता एक भोला बचपन ।
सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।
मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।
संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।
दादी की कहानियों मे नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।
वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी स्नेह आभार।
Deleteखूबसूरत शब्दों से सजी..सुंदर इन्द्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन।
ReplyDeleteस्नेह आभार।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-5-22) को "अप्रतिम सौन्दर्य"(चर्चा अंक 4425) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ReplyDeleteख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन।
सचमुच ऐसा ही तो होता है बचपन …लाजवाब भावाभिव्यक्ति कुसुम जी!
आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
वो बचपन ही था जब बारिश के पानी और कागज की किश्ती में मन प्रसन्नता की ऊंचाइयां छू लेता था। वो सुख बड़े होने बाद विलुप्त ही हो जाती शायद। बचपन को जीवंत करती सुंदर रचना।
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ReplyDeleteदादी की कहानियों मे नानी थी चांद के अंदर
ReplyDeleteसच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।
वाह!!!!
बचपन के इंद्रधनुषी रंगों में ले गयी रचना
बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन ।
आदरणीया कुसुम कोठरी जी ! प्रणाम !
ReplyDelete... एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर । ...
सभी के बचपन को साँझा कराती जिवंत पंक्तियों के लिए अभिनन्दन !
भारत माता की जय !
रचना दुबारा पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
ReplyDeleteमासूमियत में लिपटी इंद्रधनुषी सृजन।
प्रणाम दी
सस्नेह।