नंदन कानन महका
आज मन मे
श्वेत पारिजात बिखरे
तन मन मे
फूल कुसमित,
महकी चहुँ दिशाएँ
द्रुम दल शोभित
वन उर मन मे
मलय सुगंधित
उडी पवन संग
देख घटा पादप विहंसे
निज मन मे
कमल कुमुदिनी
हर्षित हो सरसे
हरित धरा मुदित
हो मन मे
जल प्रागंण
निज रूप संवारे लतिका
निरखी निरखी
लजावे मन मे।
कंचन जैसो नीर
सर सरसत
आज सखी
नव राग है मन मे ।
कुसुम कोठारी।
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
दिल में उतर गए
आप के एक एक शब्द
बहुत सा आभार नीतू जी ।
ReplyDeleteखुशियाँ छलक रही हैं कुसुम जी, बहुत बहुत बधाई इस सुंदर सृजन के लिए
ReplyDeleteआभार सुधा जी मै अभिभूत हुई। आपके स्नेह से।
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