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Friday, 2 February 2018

पारिजात

नंदन कानन महका
आज मन मे
श्वेत पारिजात बिखरे
तन मन मे
फूल कुसमित,
महकी चहुँ दिशाएँ
द्रुम  दल  शोभित
वन उर  मन मे
मलय सुगंधित
उडी पवन संग
देख घटा पादप विहंसे
निज मन मे
कमल  कुमुदिनी
हर्षित हो सरसे
हरित धरा  मुदित
हो मन  मे
जल प्रागंण
निज रूप संवारे लतिका
निरखी निरखी
लजावे मन मे।
कंचन जैसो नीर
सर  सरसत
आज सखी
नव राग है मन मे ।

         कुसुम  कोठारी।

4 comments:

  1. वाह!!!
    बहुत सुंदर रचना
    दिल में उतर गए
    आप के एक एक शब्द

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  2. बहुत सा आभार नीतू जी ।

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  3. खुशियाँ छलक रही हैं कुसुम जी, बहुत बहुत बधाई इस सुंदर सृजन के लिए

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  4. आभार सुधा जी मै अभिभूत हुई। आपके स्नेह से।

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