सोने दो चैन से मुझे न ख्वाबों मे खलल डालो
न जगाओ मुझे यूं न वादों मे खलल डालो
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ऐ हवाओं ना रुक के यूं मौजों मे खलल डालो
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफताभ ना अश्को मे खलल डालो
डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफानों मे खलल डालो
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था मन
रहमो करम कैसा,अब न इबादत मे खलल डालो।
कुसुम कोठारी
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर खलल
आप की लिखी सभी रचनाओं में से
यह भी बेशकीमती रचना मुझे बहुत अच्छी लगी
आभार सखी ।
Deleteवाह!!लाजवाब।
ReplyDeleteजी शुक्रिया।
Deleteहर शेर में अलग अन्दाज़ की ख़लल ...
ReplyDeleteलाजवाब शेर सभी
जी शुक्रिया।
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