Thursday, 15 February 2018


सोने दो चैन से मुझे न ख्वाबों मे खलल डालो
न जगाओ मुझे यूं न वादों मे  खलल डालो

शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ऐ हवाओं ना रुक के यूं मौजों मे खलल डालो

रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफताभ ना अश्को मे खलल डालो

डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफानों मे खलल डालो

रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था मन
रहमो करम कैसा,अब न इबादत मे खलल डालो।

                  कुसुम कोठारी

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. प्रिय कुसुम जी
    बहुत ही सुंदर खलल
    आप की लिखी सभी रचनाओं में से
    यह भी बेशकीमती रचना मुझे बहुत अच्छी लगी

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  3. हर शेर में अलग अन्दाज़ की ख़लल ...
    लाजवाब शेर सभी

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