चंग मृदंग ढ़ोल ढमकत चंहू और
फाल्गुन आयो मास सतरंगी
श्वास श्वास चंदन विलसत
नयनों मे केसर घुलत सुरंगी
ऋतु गुलाब आई, मन भाई
धानी चुनरी ओढ सखी चल
होरी खेलन की मन आई
अंबर गुलाल छायो चहूं और
तन मन भीगत जाए
आली मिल फाग रस गाऐं
होली मनाऐं ।
कुसुम कोठारी ।
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