मन काला तो क्या....व्यंग।
मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।
बालों को खूब संवार दे अंदर जूं का ढेर,
ऊपर से रख दोस्ती मन में चाहे बैर ।
बलवानों की कर खुशामद और जी हजूरी ,
कमज़ोरों पर रौब झाड़ रख थोड़ी सी दूरी।
बात बनती जहां दिखे बना गर्दभ जी को बाप,
जहां नहीं निज कारज सरे अपना रस्ता नाप।
मौके का जो लाभ उठाते वो ही बुद्धिमान ,
अपना कह सब हथियाले न वस्तु पराई मान ।
कुसुम कोठारी।
मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।
बालों को खूब संवार दे अंदर जूं का ढेर,
ऊपर से रख दोस्ती मन में चाहे बैर ।
बलवानों की कर खुशामद और जी हजूरी ,
कमज़ोरों पर रौब झाड़ रख थोड़ी सी दूरी।
बात बनती जहां दिखे बना गर्दभ जी को बाप,
जहां नहीं निज कारज सरे अपना रस्ता नाप।
मौके का जो लाभ उठाते वो ही बुद्धिमान ,
अपना कह सब हथियाले न वस्तु पराई मान ।
कुसुम कोठारी।
बात बनती जहां दिखे बना गर्दभ जी को बाप,
ReplyDeleteजहां नहीं निज कारज सरे अपना रस्ता नाप।
वाहहह सखी बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌👌
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-09-2019) को " महत्व प्रयास का भी है" (चर्चा अंक- 3452) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सटीक व्यंग, कुसुम दी।
ReplyDeleteकटु यथार्थ पर बहुत गहरा कटाक्ष .. बहुत सुन्दर सृजन कुसुम जी ।
ReplyDeleteवाह ! प्रिय कुसुम बहन , सफ़ेदपोशों को खूब खरी खरी ! अब दोहरे चरित्र वाले क्या करें , इसके बिना उनकी गुजर ही कब है ? और अंदर की मलिनता को कोई देख ही कब पता है | सुंदर व्यंग रचना | सस्नेह अशुब्कम्नाएं |
ReplyDeleteआज का सच तो यही है ... मौके का फायदा उठाने वाला बुद्धिमान ...
ReplyDeleteखरा खरा सब कह दिया ... लाजवाब व्यंग का भाव ...
ReplyDeleteसटीक प्रहाफ़