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Thursday, 16 September 2021

अवसरवादी


 अवसरवादी


अवसर का सोपान बना कर 

समय काल का लाभ लिया। 

रीति नीति की बातें थोथी 

निज के हित का घूँट पिया।


कौन सोचता है औरों की 

अपना ही सिट्टा सेके 

झुठी सौगंध तक खा जाते 

हाथों गंगाजल लेके 

गूदड़ कर्मों की अति भारी 

जाने क्या-क्या पाप सिया।।


क्या होता तो दिखता क्या है 

भरम यवनिका डाल रहे 

लाठी वाले भैंस नापते 

निर्बल अत्याचार सहे 

दूध फटे का मोल लगाया 

ऐसा भी व्यापार किया।। 


पोल ढोल की छुपी रहे है 

लगती जब तक चोट नही  

खुल जाये तो बात बदल दे 

जैसे कोई खोट नहीं 

फटे हुए पर खोल चढ़ाकर 

अनृत आवरण बाँध दिया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

23 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी मैं अभिभूत हूँ, मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर आभार।

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  2. समाज में नित तरह तरह के बहरूपिये मिलते हैं, एक श्रेणी अवसरवादियों की है, सार्थक परिदृश्य दिखाती यथार्थवादी रचना,बहुत बधाई आपको।

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    1. रचना के भावों को समर्थन देती सुदृढ़ पंक्तियां, जिससे रचना में नई रवानी का समावेश हुआ।
      सस्नेह आभार जिज्ञासा जी।

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  3. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
    'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच पर रचना को शामिल करना, मेरे लिए सदा हर्ष का विषय है।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  5. बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  6. आज के स्वार्थी चेहरों की पोल खोलती सुंदर रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी सदा लेखनी को उर्जा प्रदान करती है।
      सादर सस्नेह।

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  7. का हानि? समयच्युति। अर्थात वर्तमान में स्वार्थ वाले अवसर को चूकना ही हानि हो गया है इसलिए ऐसा हो रहा है । अति सुन्दर काव्य कृति ।

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    1. आपकी गहन टिप्पणी ने रचना में निहित भावों का निचोड़ कह दिया है।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर सस्नेह।

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  8. बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  9. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  10. कौन सोचता है औरों की
    अपना ही सिट्टा सेके
    झुठी सौगंध तक खा जाते
    हाथों गंगाजल लेके
    गूदड़ कर्मों की अति भारी
    जाने क्या-क्या पाप सिया।।
    अवसरवादियों को सटीक परिभाषित करता लाजवाब नवगीत...
    लाठी वाले भैंस नापते!!!
    वाह!!!
    कमाल के बिम्ब एवं व्यंजनाएं।

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    1. मैं अभिभूत हूं सुधाजी आपकी मोहक टिप्पणी मन को हर्ष से लबरेज कर गई।
      सच आपका स्नेह सदा मेरी लेखनी को उर्जा प्रदान करता है।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      ढेर सा आभार।
      सस्नेह।

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  11. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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