एक दिवस हिन्दी लगे, गंगा जल का पान।
सच्चे मन से आँकिए, कहाँ है इसकी आन।।
उपेक्षिता
देव नागरी भाषा उत्तम
गुणी जनो ने भी गुण गाया।
अनंत शब्द भंडार सुशोभित
अलंकार से निखरी काया।
विविध रंग की रंगोली में
शुभ्र वर्ण लेकर खिलती है
अभ्यागत को गले लगा कर
सागर में गंगा मिलती है
संस्कृत ने जो पौधा सींचा
उस हिन्दी की शीतल छाया।।
दो अक्षर भी भाव समेटे
सौम्य सुघड़ सुंदर गहरे
विश्व कोष में और कौनसी
भाषा इसके आगे ठहरे
आंग्ल मोहिनी पाश फसा जन
निजता छोड़ झूठ भरमाया।।
दाँव घात में ऐसे उलझी
शैशव से न तरुण हो पाई
प्राची उगते बाल सूर्य पर
काल घटा गहरी लहराई
देव वंशजा भाषा मंजुल
पूरा मान कहाँ कब पाया।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
शुभकामनाएं हिंदी दिवस की| सुन्दर सृजन|
ReplyDeleteवाह!गज़ब दी 👌
ReplyDeleteहर बंद सराहना से परे।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना नये आयाम पा गई प्रिय अनिता।
Deleteसस्नेह आभार।
हिंदी दिवस पर हिंदी के लिए सटीक चिंतन ।हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम बधाई 💐💐
ReplyDeleteआपको भी असीम शुभकामनाएं जिज्ञासा जी,।
Deleteसस्नेह आभार स्वीकारोक्ति के लिए।
सस्नेह।
सत्य कहा दीदी आपने, उपेक्षिता बन कर रह गई हिंदी!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार बहना आपकी उत्साहवर्धक उपस्थित मन को प्रसन्न करने वाली है।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
दाँव घात में ऐसे उलझी
ReplyDeleteशैशव से न तरुण हो पाई
प्राची उगते बाल सूर्य पर
काल घटा गहरी लहराई
सचमुच शैशवावस्था में ही है अभी तक अपनी हिन्दी
उपेक्षित हिन्दी...
बहुत ही लाजवाब।
ये हैं तो दुखद सुधा जी पर सच को लेखनी नहीं नकार सकती ।
Deleteहां हिन्दी मेरा अभिमान है ।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार।
सराहनीय चिंतापरख रचना!!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका,आपके समर्थन से रचना की सार्थकता को बल दिया।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर। आशा करते हैं कि तमाम निराशाओं के बीच भी हिन्दी का जलवा रहेगा। जिस तरह दूसरी भाषाओं ने हिंदी के शब्दों को गले लगाया है उसी तरह दूसरी भाषाओं के शब्दों को हिन्दी भाषी भी अपनाते चलें।
ReplyDeleteजी दिल से यहीं इच्छा है हमारी हिन्दी राष्ट्रभाषा का दर्जा पाकर ऊँचाईंयों को अग्रसर रहे।
ReplyDeleteवैसे अनुपम है हिन्दी।
सादर आभार आपका आपकी विस्तृत आशा का संचार करती टिप्पणी हिन्दी का मान बढ़ा रही है ।
सादर।