स्मृति पटल पर गाँव
बैठ कर मन बाग मीठी
मोरनी गाने लगी है
हर पुरानी बात फिर से
याद अब आने लगी है।।
कर्म पथ बढ़ते रहे थे
छोड़ आये सब यहाँ हम
बात अब लगती अनूठी
सोच में अभिवृद्धि थी कम
स्मृति पटल पर गाँव की वो
फिर गली छाने लगी है।।
भ्रान्ति में उलझे शहर के
त्याग सात्विक ग्राम जीवन
यूँ भटकते ही चले फिर
सी रहे हर जून सीवन
कैद छूटी बुलबुलें फिर
उड़ वहाँ जाने लगी है।।
कोड़ियों से खेल रचते
धूल में तन थे महकते
पाँव में चप्पल न जूते
दौड़ते बेसुध चहकते
डूबकर कब रंग गागर
फाग लहराने लगी है।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
निश्चित ही कुसुम जी, बहुत खूब लिखा आपने कि---बैठ कर मन बाग मीठी
ReplyDeleteमोरनी गाने लगी है
हर पुरानी बात फिर से
याद अब आने लगी है।।---परंतु आज के गांव देखकर हमारी सुखद स्मृतियां बहुत बेचैन हो जाती हैं।
जी सही कहा आपने गाँव भी अब पर्यावरण और आधुनिकता की चपेट में आने लगे हैं ।
Deleteसस्नेह आभार आपका आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteगांव की बात ही कुछ और है। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
कोड़ियों से खेल रचते
ReplyDeleteधूल में तन थे महकते
पाँव में चप्पल न जूते
दौड़ते बेसुध चहकते
डूबकर कब रंग गागर
फाग लहराने लगी है।।
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सादर।
ReplyDeleteभ्रान्ति में उलझे शहर के
त्याग सात्विक ग्राम जीवन
यूँ भटकते ही चले फिर
सी रहे हर जून सीवन
कैद छूटी बुलबुलें फिर
उड़ वहाँ जाने लगी है।।
सच कहा कुसुम जी,एक एक शब्द मन में उतर गया ।बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति 💐💐
जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहमान हुई।
Deleteआपका स्नेह मेरा सौभाग्य है ।
सस्नेह ।
वाह!बहुत सुंदर सृजन दी।
ReplyDeleteबैठ कर मन बाग मीठी
मोरनी गाने लगी है
हर पुरानी बात फिर से
याद अब आने लगी है।।.. वाह!👌
बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteरचना गतिमान हुई।
सस्नेह।
बहुत खूब लिखा है आपने।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteकोड़ियों से खेल रचते
ReplyDeleteधूल में तन थे महकते
बहुत ही सुंदर सृजन
जी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर।
कर्म पथ बढ़ते रहे थे
ReplyDeleteछोड़ आये सब यहाँ हम
बात अब लगती अनूठी
सोच में अभिवृद्धि थी कम
स्मृति पटल पर गाँव की वो
फिर गली छाने लगी है।।
अब फुर्सत के पलों में गाँव की मधुर स्मृतियों में खो ही जाता है मन...और मन के उन भावों को इतनी खूबसूरती से बयां करना कोई आपसे सीखे...
कमाल का नवगीत... बहुत ही मनमोहक...लाजवाब।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सदा नये आयाम पाती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिए।
ReplyDeleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।