श्वास रहित है तन पिंजर
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने
गोकुल छोड़़ जावन कहे
बात नेह की कब माने।
अमर लतिका स्नेह लिपटी
छिटक दूर क्यों कर जाए।
बिना मूल मैं तरु पसरी
जान कहाँ फिर बच पाए।
श्वास रहित है तन पिंजर
साथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
बिना चाँद चातक तरसे
रात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता।
कौन सुने खर जग सारा।
बात बात देता ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका मुखरित मौन पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर।
बिना चाँद चातक तरसे
ReplyDeleteरात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता।
वाह!!!!
अद्भुत शब्दसंयोजन लाजवाब सृजन।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०७ -०९-२०२१) को
'गौरय्या का गाँव'(चर्चा अंक- ४१८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteइस हाहाकारी विरह को कौन जान पाया है ? जिसके लिए है वो तो सबसे ज्यादा अनजान बना रहता है । तो भी उसी के लिए पुकार है , मनुहार है । अति सुन्दर कृति ।
ReplyDeleteश्वास रहित है तन पिंजर
ReplyDeleteसाथ सखी देती ताने।
तड़प मीन की मन मेरे
श्याम नही अंतर जाने ।
कृष्ण के प्रति अथाह आसक्ति के भाव को अभिव्यक्ति करता अत्यंत हृदयस्पर्शी सृजन ।
बिना चाँद चातक तरसे
ReplyDeleteरात रात जगता रहता
टूट टूट मन इक तारा
सिसक सिसक आहें भरता। विरह की वेदना का अनुपम भाव व्यक्त करती सुंदर लड़ियों जैसे रचना । बहुत शुभकामनाएं कुसुम जी ।
बढ़िया भावपूर्ण विरह गीत। अद्भुत काव्य सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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