Friday, 24 September 2021

स्मृति पटल पर गाँव

स्मृति पटल पर गाँव 


बैठ कर मन बाग मीठी 

मोरनी गाने लगी है 

हर पुरानी बात फिर से 

याद अब आने लगी है।।


कर्म पथ बढ़ते रहे थे 

छोड़ आये सब यहाँ हम 

बात अब लगती अनूठी 

सोच में अभिवृद्धि थी कम 

स्मृति पटल पर गाँव की वो

फिर गली छाने लगी है।।


भ्रान्ति में उलझे शहर के 

त्याग सात्विक ग्राम जीवन 

यूँ भटकते ही चले फिर 

सी रहे हर जून सीवन 

कैद छूटी बुलबुलें फिर

उड़ वहाँ जाने लगी है।।


कोड़ियों से खेल रचते 

धूल में तन थे महकते 

पाँव में चप्पल न जूते 

दौड़ते बेसुध चहकते 

डूबकर कब रंग गागर  

फाग लहराने लगी है।।


 कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

 

21 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  2. न‍िश्‍च‍ित ही कुसुम जी, बहुत खूब ल‍िखा आपने क‍ि---बैठ कर मन बाग मीठी

    मोरनी गाने लगी है

    हर पुरानी बात फिर से

    याद अब आने लगी है।।---परंतु आज के गांव देखकर हमारी सुखद स्‍मृत‍ियां बहुत बेचैन हो जाती हैं।

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    1. जी सही कहा आपने गाँव भी अब पर्यावरण और आधुनिकता की चपेट में आने लगे हैं ।
      सस्नेह आभार आपका आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  4. गांव की बात ही कुछ और है। बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  5. कोड़ियों से खेल रचते

    धूल में तन थे महकते

    पाँव में चप्पल न जूते

    दौड़ते बेसुध चहकते

    डूबकर कब रंग गागर

    फाग लहराने लगी है।।
    सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  6. भ्रान्ति में उलझे शहर के

    त्याग सात्विक ग्राम जीवन

    यूँ भटकते ही चले फिर

    सी रहे हर जून सीवन

    कैद छूटी बुलबुलें फिर

    उड़ वहाँ जाने लगी है।।

    सच कहा कुसुम जी,एक एक शब्द मन में उतर गया ।बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति 💐💐

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहमान हुई।
      आपका स्नेह मेरा सौभाग्य है ।
      सस्नेह ।

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  7. वाह!बहुत सुंदर सृजन दी।
    बैठ कर मन बाग मीठी

    मोरनी गाने लगी है

    हर पुरानी बात फिर से

    याद अब आने लगी है।।.. वाह!👌

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      रचना गतिमान हुई।
      सस्नेह।

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  8. बहुत खूब लिखा है आपने।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  9. कोड़ियों से खेल रचते 

    धूल में तन थे महकते 

    बहुत ही सुंदर सृजन

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका ‌‌।
      सादर।

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  10. कर्म पथ बढ़ते रहे थे

    छोड़ आये सब यहाँ हम

    बात अब लगती अनूठी

    सोच में अभिवृद्धि थी कम

    स्मृति पटल पर गाँव की वो

    फिर गली छाने लगी है।।
    अब फुर्सत के पलों में गाँव की मधुर स्मृतियों में खो ही जाता है मन...और मन के उन भावों को इतनी खूबसूरती से बयां करना कोई आपसे सीखे...
    कमाल का नवगीत... बहुत ही मनमोहक...लाजवाब।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सदा नये आयाम पाती है ।
      सस्नेह।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिए।
    मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

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