Wednesday, 22 September 2021

निज पर विश्वास

निज पर विश्वास


निजता का सम्मान

निराशा में जिसने खोया।

राही भटका राह

निशा तम में घिरकर सोया।।


रे चेतन ये सोच

जगत में तू उत्तम कर्ता

पर जो खेले खेल 

वही तो होता है भर्ता

भावों का विश्वास 

जहाँ भी टूटा वो रोया।


निज भीतर की शक्ति

अरे जानो तोलो झांको

अज्ञानी मृग कौन

तुम्हीं सृष्टा हो मन आंको

जागेगा अब भाग

विवेकी का दाना बोया।।


दृष्टा बनके देख

अजा का अद्भुत है लेखा

जिसने लेली सीख

बदल ली हाथों की रेखा

उलझा रेशम छोड़

बटे तृण में मोती पोया।।


अजा=प्रकृति


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

27 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      मैं चर्चा में उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  2. निज भीतर की शक्ति

    अरे जानो तोलो झांको

    अज्ञानी मृग कौन

    तुम्हीं सृष्टा हो मन आंको

    बहुत खूब,सुंदर सृजन,सादर नमन कुसुम जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

      Delete
  3. मैंने इस कविता को हृदयंगम कर लिया है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  4. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  5. दृष्टा बनके देख

    अजा का अद्भुत है लेखा

    जिसने लेली सीख

    बदल ली हाथों की रेखा

    उलझा रेशम छोड़

    बटे तृण में मोती पोया।।

    आशा और उम्मीद की किरण बिखेरती उत्तम कृति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  6. सच कहा दी आपने आत्मशक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं।
    इर्द-गिर्द डोलती भटकाव की वस्तुएं कहाँ झाँकने देती है मनुष्य को निज में।
    वाह!लाज़वाब सृजन।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह! सुंदर मंथन करती प्रतिपंक्तियाँ , भावों को स्पष्ट करने में सार्थक सहयोग करती सुंदर प्रतिक्रिया ।
      सस्नेह आभार।

      Delete
  7. वाह!खूबसूरत सृजन कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी ।
      सदा स्नेह देते रहें ।
      सस्नेह।

      Delete
  8. बढ़िया सीख देती सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
      स्नेह मिलता रहे आपका।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  9. सुंदर सत्वपूर्ण कृति !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी रचना को स्नेह देने के लिए।
      सस्नेह ।

      Delete
  10. बहुत सुंदर प्रस्तुति कुसुम जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  11. निजता का सम्मान
    निराशा में जिसने खोया।
    राही भटका राह
    निशा तम में घिरकर सोया।।
    बहुत सटीक संदेशप्रद और अत्यंत सारगर्भित लाजवाब नवगीत
    अंतर्मन की शक्ति आँकने वाला कुछ भी कर सकता है....।
    दृष्टा बनके देख
    अजा का अद्भुत है लेखा
    जिसने लेली सीख
    बदल ली हाथों की रेखा
    उलझा रेशम छोड़
    बटे तृण में मोती पोया।।
    वाह!!!!
    कमाल का शिल्प विधान।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  12. निज भीतर की शक्ति

    अरे जानो तोलो झांको

    अज्ञानी मृग कौन

    तुम्हीं सृष्टा हो मन आंको

    बहुत खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  13. तूफान से लड़कर कश्ती पतवार हो जाती हैं।
    बूँद-बूँद बारिश बहती नदी की धार हो जाती है।
    धुँध,गर्द,अंधेरे जब ढँक लें उजियारा मन का,
    नन्हीं-सी इक आस की किरण शीतलता से
    अंधेरों के कवच तोड़ कर आर-पार हो जाती है।
    -----
    बेहतरीन संदेशात्मक बहुत सुंदर सृजन दी।
    सादर।

    ReplyDelete
  14. वाह क्या बात है श्वेता, सुंदर! बहुत सुंदर भाव रच दिए आपने मेरी रचना लगता है पूर्ण हुई।
    सस्नेह आभार आपका।

    ReplyDelete
  15. जी सादर आभार आपका में मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

    ReplyDelete