क्या लिखें लेखनी
पीड़ा कैसे लिखूँ
दृग से बह जाती है
समझे कोई न मगर
कुछ तो ये कह जाती है
तो फिर हास लिखूँ
परिहास लिखूँ
नहीं कैसे जलते
उपवन पर रोटी सेकूँ
मानवता रो रही
मैं हास का दम कैसे भरूँ
करूणा ही लिख दूँ
बिलखते भाग्य पर
अपनी संवेदना
पर कैसे कोई मरहम
होगा मेरी कविता से
कैसे पेट भरेगा भूख का
कैसे तन को स्वच्छ
वसन पहनाएगी
मेरी लेखनी
क्या लू से जलते
की छाँव बनेगी
किसी के सर पर छत
या आश्वासनों का
कोरा दस्तावेज
नहीं ऐसी कहानी
क्यों लिखूँ मैं
जो रोते को दहलादे
हँसते की हँसी चुराले
कविता दो निवाले
खिला दो मानवता को
सिर्फ रोटी ही बन जाओ
नमक का जुगाड़
तो क्षुधा से व्याकुल
कर ही लेगा ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
हृदयस्पर्शी रचना सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह आभार सखी।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteकविता दो निवाले
ReplyDeleteखिला दो मानवता को
सिर्फ रोटी ही बन जाओ
नमक का जुगाड़
तो क्षुधा से व्याकुल
कर ही लेगा ।।
एक संवेदनशील कवि भूखे बिलखते समाज को नजरअंदाज कैसे कर सकता है अपनी अनमोल पूँजी अपनी कविता से परपीड़ा मिटाना चाहता है काश कवि कवि की कविता रोटी बन पाती..
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
सुधा जी आपकी व्खात्मक प्रतिक्रिया से रचना के भाव और भी स्पष्ट हुए,लेखन में नव उत्साह का संचार करती उर्जावान प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
मन को झकझोरती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, रचना सार्थक हुई।
Deleteनिशब्द करती अभिव्यक्ति आदरणीय दी शब्द शब्द मानव पीड़ा का बख़ान करता। सुंदर प्रवाह रचना का... कल कल झरने-सी बहती ...
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार , उर्जा देते भावात्मक शब्द रचना को प्रवाह दे रहे हैं।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी चर्चा मंच पर ।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।