Thursday, 8 October 2020

क्या लिखे लेखनी

 क्या लिखें लेखनी


पीड़ा कैसे लिखूँ

दृग से बह जाती है

समझे कोई न मगर

कुछ तो ये कह जाती है

तो फिर हास लिखूँ

परिहास लिखूँ

नहीं कैसे जलते

उपवन पर रोटी सेकूँ

मानवता रो रही 

मैं हास का दम कैसे भरूँ

करूणा ही लिख दूँ

बिलखते भाग्य पर

अपनी संवेदना 

पर कैसे कोई मरहम

होगा मेरी कविता से

कैसे पेट भरेगा भूख का

कैसे तन को स्वच्छ 

वसन पहनाएगी 

मेरी लेखनी

क्या लू से जलते 

की छाँव बनेगी 

किसी के सर पर छत

या आश्वासनों का 

कोरा दस्तावेज

नहीं ऐसी कहानी 

क्यों लिखूँ मैं

जो रोते को दहलादे

हँसते की हँसी चुराले

कविता दो निवाले 

खिला दो मानवता को

सिर्फ रोटी ही बन जाओ

नमक का जुगाड़

तो क्षुधा से व्याकुल 

कर ही लेगा ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


12 comments:

  1. हृदयस्पर्शी रचना सखी।

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार सखी।

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  2. कविता दो निवाले

    खिला दो मानवता को

    सिर्फ रोटी ही बन जाओ

    नमक का जुगाड़

    तो क्षुधा से व्याकुल

    कर ही लेगा ।।

    एक संवेदनशील कवि भूखे बिलखते समाज को नजरअंदाज कैसे कर सकता है अपनी अनमोल पूँजी अपनी कविता से परपीड़ा मिटाना चाहता है काश कवि कवि की कविता रोटी बन पाती..
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।

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    1. सुधा जी आपकी व्खात्मक प्रतिक्रिया से रचना के भाव और भी स्पष्ट हुए,लेखन में नव उत्साह का संचार करती उर्जावान प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साह वर्धन हुआ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, रचना सार्थक हुई।

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  5. निशब्द करती अभिव्यक्ति आदरणीय दी शब्द शब्द मानव पीड़ा का बख़ान करता। सुंदर प्रवाह रचना का... कल कल झरने-सी बहती ...
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार , उर्जा देते भावात्मक शब्द रचना को प्रवाह दे रहे हैं।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी चर्चा मंच पर ।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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