विश्व के छाले सहला दो!
ओ चाँद कहां छुप बैठे हो
ढ़ूंढ़ रही है तुम्हें दिशाएं
अपनी मुखरित उर्मियाँ
कहाँ समेट कर रखी है
क्या पास तुम्हारे भी है
माँ के जैसा कोई प्याला
जिसमें स्नेह वशीभूत हो
वो छुपा दिया करती थी
सबकी नजरों से बचाकर
मेरे लिए नवनीत चूरमा
पर वो होता था मेरे लिए
तुम किसके लिए सहेज रहे
ये रजत किरणें दीप्त सी
खोलदो उन्हें आजाद करदो
बिखेर दो तम के साम्राज्य पर
साथ ही अमि सुधा की कुछ बूंदें
टपकादो विश्व के जलते छालों पर।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह, बहुत बढ़िया🌻
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार! चर्चा मंच पर उपस्थित निश्चित है बस देरी हो जाती हैं ।
Deleteसादर।
बेहतरीन लेखन, हमेशा की तरह। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सा आभार आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर, वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन के लिए ।
सादर।
सुन्दर, सकारात्मक !
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
वाह सखी बहुत खूब
ReplyDeleteविश्व के छाले सहला दो
बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह
बहुत सुंदर रचना सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteसदा उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर लेख |
ReplyDeleteHindi Vyakran Samas
This comment has been removed by the author.
Deleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर आभार!देरी हो गई है पर पाँच लिंक पर आऊंगी जरूर ।
ReplyDeleteसादर।