कर्तव्य उन्मुक्त
नीलम सा नभ उस पर खाली डोलची लिये
स्वच्छ बादलों का स्वच्छंद विचरण
अब उन्मुक्त हैं कर्तव्य भार से
सारी सृष्टि को जल का वरदान
मुक्त हस्त दे आये सहृदय
अब बस कुछ दिन यूं ही झूमते घूमना
चाॅद से अठखेलियां हवा से होड
नाना नयनाभिराम रूप मृदुल श्वेत
चाँद की चाँदनी में चाँदी सा चमकना
उड उड यहां वहां बह जाना फिर थमना
धवल शशक सा आजाद विचरन करना
कल फिर शुरू करना है कर्म पथ का सफर
फिर खेतों में खलिहानों में बरसना
फिर पहाडों पर नदिया पर गरजना
मानो धरा को सींचने स्वयं को न्योछावर होना।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजी सादर आभार, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteकर्तव्य उन्मुक्त अप्रीतम
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार।
Deleteउत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर और प्रेरक।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteस्वच्छ बादलों का स्वच्छंद विचरण
ReplyDeleteअब उन्मुक्त हैं कर्तव्य भार से
सारी सृष्टि को जल का वरदान
मुक्त हस्त दे आये सहृदय
अब बस कुछ दिन यूं ही झूमते घूमना
बरसात के बादल जो समूची धरा को पानी देने के कर्तव्य का निर्वहन कर अब खाली डोलची लिए उन्मुक्त नजर आ रहे हैं ....बहुत ही सुन्दर मनमोहक सृजन...अद्भुत कल्पनाशक्ति
वाह!!!
सस्नेह आभार सुधा जी आपकी विश्लेषणात्मक सुंदर प्रतिक्रिया से रचना का मोल बढ़ गया।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए,मैं उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
प्रकृति की सिद्धहस्त चितेरी हैं आप । मनमोहक भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत खुब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteआज पहली बार आपकी कुछ रचनाएँ पढने का सौभाग्य मिला | वास्तव में आप अच्छा लिख रही हैं |बहुत बहुत शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteफर्लांग पर सदा स्वागत है आपका ,आते रहिए।🙏