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Wednesday, 28 October 2020

लालसा

 लालसा


है छलावा हर दिशा में 

धुंध के बादल उमड़ते 


दिन सजाता कामनाएं 

वस्त्र बहु रंगीन पहने 

श्याम ढ़लते लाद देते 

रत्न माणिक हीर गहने 

स्वप्न नित बनकर पखेरू 

बादलों के पार उड़ते।


बाँध कर के पाँख मोती 

मन अधीरा फिर भटकता 

नापता है विश्व सारा 

मोह जाले में अटकता 

भूलता फिर सब विवेकी 

ज्ञान के तम्बू उखड़ते।।


लालसा का दास मानव 

नाम की बस चाह होती 

अर्थ के संयोग से फिर 

भावना की डोर खोती 

द्वेष की फिर आँधियों में 

मूल्य के उपवन उजड़ते।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


28 comments:

  1. दिन सजाता कामनाएं

    वस्त्र बहु रंगीन पहने

    श्याम ढ़लते लाद देते

    रत्न माणिक हीर गहने

    स्वप्न नित बनकर पखेरू

    बादलों के पार उड़ते। वाह बेहतरीन रचना सखी 👌

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    1. सखी मोहक उपस्थित आपकी मन लुभा जाती है।
      सस्नेह आभार।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय।
      मैं मंच पर जरूर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  3. गज़ब दी हर बंद सराहनीय।
    सादर

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. अति सुंदर कृति ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा आपका इंतजार रहेगा
      सस्नेह।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. वाह आपका पुनः सक्रिय होना सुखद और आनंदित करने वाला है ‌।
      ढेर सारा आभार,मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी अवश्य।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार,बहना आपको ब्लाग पर देख कर सदा ढेर सी खुशी मिलती है।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  8. सत्य है आदरणीय दीदी जी इन विकारों के आगे मनुष्य रोज़ छला जाता है। इस धुंध के आगे विवेक जैसे क्षीण हो चला। बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏

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    1. बहुत बहुत ढेर सा स्नेह,आँचल आपकी मनभावन टिप्पणी सदा उर्जा प्रदान करती है, सुंदर विश्लेषण।
      सस्नेह।

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  9. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सुंदर कविता जो कि मानव मन की दशा बता कर व्यक्ति को विकारों से सचेत रहने का संदेश देती है। मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी उत्साह वर्धक टिप्पणी अंकित करने के लिए हृदय से आभार। कृपया आती रहें और अपना आशीष बनाये रखें। सुंदर रचना के लिए हृदय से आभार व सादर नमन।

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार बहना आपकी रचना को विस्तार देती टिप्पणी मनभावन सार्थक है।
      आपके ब्लॉग पर मौका मिलते ही आती हूं, बस व्यस्तता के चलते कुछ ब्लाग कई दफा छूट जाते हैं फिर भी प्रयास रहता है सभी को पढूं बस टिप्पणी कई बार छूट जाती है ।
      आपकी रचनाएं बहुत आकर्षक सार्थक होती है।

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  10. बहुत ही सुंदर रचना,कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन मन खुश हुआ।
      सस्नेह।

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  11. स्वप्न नित बनकर पखेरू
    बादलों के पार उड़ते....
    कविता के हर बंद को सुगठित, सुरुचिपूर्ण शब्दों में बाँधते हुए अद्भुत स्रजन किया है आपने....सभी पंक्तियाँ अनमोल विचारों से सुसज्जित हैं। जैसे -
    द्वेष की फिर आँधियों में
    मूल्य के उपवन उजड़ते !!!

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी उपस्थिति वैसे भी रचना को प्रवाह व उर्जा देती है ।
      बहुत सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया आपकी, मन प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह ।
      आते रहिएगा।

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  12. लालसा का दास मानव
    नाम की बस चाह होती
    अर्थ के संयोग से फिर
    भावना की डोर खोती
    द्वेष की फिर आँधियों में
    मूल्य के उपवन उजड़ते।।.
    बहुत ही चिंतन परक रचना प्रिय कुसुम बहन. ये लालसायें ही इंसान को जीवन भर भटकाती हुई कभी चैन से जीने नहीं देती. सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन।
      हमेशा कि तरह आपकी व्याख्यात्मक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया
      रचना को मूल्यवान बनाती है।
      बहुत सुंदर सटीक विश्लेषण।
      सस्नेह आभार।

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  13. Replies
    1. बहुत बहुत सा आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  14. प्रभावपूर्ण प्रस्तुति !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका आते रहिएगा सस्नेह।

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