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Monday, 20 February 2023

सार बातें


 गीतिका

मापनी: 212 1212 1212 1212.


सार बातें 


क्रोध का उठाव बुद्धि का बने पतन सदा।

हो हृदय क्षमा विचार प्रेम का कथन सदा।।


बार-बार भूल का सुधार भी न जो करें।

भूल क्यों इसे कहो मृषा कहो जतन सदा।।


चोर जो चुरा सके न लूट ही सके  जिसे।

ज्ञान सार धन यही अमूल्य ये रतन सदा।।


जीत जग वही सके उदार जो हृदय रखें।

प्रीत कुम्भ हो विशाल द्वेष फिर गमन सदा।।


अर्थ के बली उन्हें न छेड़ते कभी कहीं ‌। 

ये जगत स्वभाव है गरीब का दमन सदा।।


वे 'कुसुम' महान काज परहिताय जो करें ।

स्वार्थ राग तज करो उन्हें  सभी नमन सदा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

4 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  2. बहुत ही सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. सस्नेह आभार आपका ज्योति बहन।

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