भावों के मोती जब बिखरे
मन की वसुधा हुई सुहागिन
आज मचलती मसी बिखेरे
माणिक मुक्ता नीलम हीरे
नवल दुल्हनिया लक्षणा की
ठुमक रही है धीरे-धीरे
लहरों के आलोडन जैसे
हुई लेखनी भी उन्मागिन।।
जड़ में चेतन भरने वाली
कविता हो ज्यों सुंदर बाला
अलंकार से मण्डित सजनी
स्वर्ण मेखला पहने माला
शब्दों से श्रृंगार सजा कर
निखर उठी है कोई भागिन।
झरने की धारा में बहती
मधुर रागिनी अति मन भावन
सुभगा के तन लिपटी साड़ी
किरणें चमक रही है दावन
वीण स्वरों को सुनकर कोई
नाच रही लहरा कर नागिन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार 21 जनवरी 2023 को 'प्रतिकार फिर भी कर रही हूँ झूठ के प्रहार का' (चर्चा अंक 4636) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
जी बहुत बहुत आभार आपका रविन्द्र जी चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteसादर सस्नेह।
मन के उठते भाव को भाकूबी आप शबों का जामा पहनाती हैं ...
ReplyDeleteलाजवाब भावपूर्ण रचना ...
जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
Deleteसृजन मुखरित हुआ।
सादर।
आपकी लिखी रचना सोमवार 6 मार्च 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आदरणीय संगीत जी पाँच लिंक पर वो भी आपके सौजन्य से आना सदा अभिभूत करता है।
Deleteसहृदय आभार आपका।
सादर सस्नेह।
मैं सभी लिंक्स पर भ्रमण कर आई हूं, शानदार प्रस्तुति।
मन की वसुधा हुई सुहागिन.. प्रतीकों और बिम्बों का सुंदर चित्रांकन.. अतीव सुंदर लिखा है.. आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🖍️🖍️💐💐
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी,आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
जड़ में चेतन भरने वाली
ReplyDeleteकविता हो ज्यों सुंदर बाला
अलंकार से मण्डित सजनी
स्वर्ण मेखला पहने माला
भावों के मोती सरस शब्दावली के संगम से पूरी आब से चमक उठे । रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ कुसुम जी!
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया सदा मेरे लेखन का संबल है।
Deleteसस्नेह।
आज मचलती मसी बिखेरे
ReplyDeleteमाणिक मुक्ता नीलम हीरे
नवल दुल्हनिया लक्षणा की
ठुमक रही है धीरे-धीरे
लहरों के आलोडन जैसे
हुई लेखनी भी उन्मागिन।
वाह!!!
सच में कुसुम जी ! लक्षणा को नवल दुल्हनिया सा श्रृंगारित कर आपकी लेखनी हमेशा उन्मादित में रचती है अद्भुत रचनाएं
।
और हमेशा यूँ ही रचती रहे माँ सरस्वती की कृपा रहे आप पर हमेशा ।
रंगोत्सव की अनंत शुभकामनाएं ।
सुधा जी आपकी नेह सिक्त विशेष प्रतिक्रिया लेखन को गति प्रदान करती है।
Deleteसस्नेह आभार आपका, आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
मनभावन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
ब्लॉग पर सदा प्रतिक्षा रहेगी आपकी।
हमेशा की तरह मन को छूने वाली सुन्दर रचना प्रिय कुसुम बहन।भावों के मोती बिखर कर मन की वसुधा का शृंगार तो करते हैं ही।इस शृंगार से काव्य रसिक भी तृप्त होते हैं।सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई आपको।होली की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें ♥️♥️🙏
ReplyDeleteआपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को नये आयाम मिले प्रिय रेणु बहन।
Deleteसस्नेह आभार आपका एवं अनंत शुभकामनाएं 🌹
आहा अति मनभावन क्या सुंदर शब्द-शिल्प है लाज़वाब दी।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं की अलग बात है सचमुच।
प्रणाम दी
सस्नेह।
सस्नेह आभार आपका श्वेता आपकी प्रतिक्रिया से लेखन को नव उर्जा मिली।
Deleteसस्नेह।
आज मचलती मसी बिखेरे
ReplyDeleteमाणिक मुक्ता नीलम हीरे
नवल दुल्हनिया लक्षणा की
ठुमक रही है धीरे-धीरे
लहरों के आलोडन जैसे
हुई लेखनी भी उन्मागिन।
जी उम्दा अभिव्यक्ति , सादर ।
आपकी सुलेखनी से लेखन को सराहना मिली, हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर
ReplyDeleteजड़ में चेतन भरने वाली
कविता हो ज्यों सुंदर बाला
अलंकार से मण्डित सजनी
स्वर्ण मेखला पहने माला
शब्दों से श्रृंगार सजा कर
निखर उठी है कोई भागिन।
अति सुंदर,होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको कुसुम जी
हृदय से आभार आपका कामिनी जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteआपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं 🌷।
हृदय से आभार आपका कामिनी जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteआपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं 🌷।