हिन्दी कुशल सखी
काव्य मंजूषा छलक रही है
नित-नित मान नवल पाये।
हिन्दी अपने भाष्य धर्म से
डगर लेखनी दिखलाये।।
भाव सरल या भाव गूढ़ हो
रस मेघों से आच्छादित
कविता मन को मोह रही है
शब्द शक्तियाँ आल्हादित
प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी
संधि विश्व को सिखलाये।।
हिन्दी कवियों को अति रुचिकर
कितने ग्रंथ रचे भारी
राम कृष्ण आदर्श बने थे
जन मन की हर दुश्वारी
मंदिर का दीपक यह हिन्दी
विरुदावली भाट गाये ।।
जन आंदोलन का अस्त्र महा
नाट्य मंच का स्तंभ बनी
चित्रपटल संगीत जगत का
हिन्दी ही उत्तंभ बनी
अब नहीं अभिख्यान अपेक्षित
यश भूमंडल तक छाये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी
ReplyDeleteसंधि विश्व को सिखलाये।।
प्रीत की रीत हिंदी ही सिखा सकती है जग को ।
बहुत ही लाजवाब
हिंदी दिवस की अनंत शुभकामनाएं ।
सस्नेह आभार आपका सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसस्नेह।
हिन्दी दिवस की बहुत भुत शुभकामनाएं ... हिन्दी के लिए सभी कार्य करें ...
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका नासवा जी, उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteसादर।