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Thursday, 5 January 2023

दिल्ली का दर्द


 दिल्ली का दर्द


गेहिनी बन घर सँवारा

धार भूषण झिलमिलाई 

सैंकड़ों व्याघात झेले

चोट करती हर बिलाई।


राजरानी ये सिया सी

स्वामिनी भी तपस्विनी भी

सिर मुकुट धारा कभी तो

बन रही वो अधस्विनी भी

मौन बहते नेत्र जल को

पोंछ कर भी खिलखिलाई।।


आक्रमण के दंश तन पर

झेल कर आघात भारी

रोम से बहता लहू था

नाचती शायक दुधारी

नित फटे पोशाक बदले

और उधड़े की सिलाई।।


साथ लेकर दीर्घ गाथा

एक नगरी लाख पहरी

धैर्य के जब बाँध टूटे

बह चली तब पीर गहरी

चीखता प्राचीर क्रंदन

आज दिल्ली तिलमिलाई।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

4 comments:

  1. सुंदर सार्थक रचना ।
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ll

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    1. हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  2. साथ लेकर दीर्घ गाथा

    एक नगरी लाख पहरी

    धैर्य के जब बाँध टूटे

    बह चली तब पीर गहरी

    चीखता प्राचीर क्रंदन

    आज दिल्ली तिलमिलाई।
    बहुत सटीक ...एक नगरी लाख पहरी की अनेकों दीर्घ गाथाओं के साथ दिल्ली ।
    वाह!!!!

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    Replies
    1. सार्थक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह आभार आपका सुधा जी।

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