जीवन जैसे युद्ध
जीवन जैसे युद्ध बना है
सुख बैठा पर्वत चोटी।
क्या धोए अब किसे निचोड़े
तन बस एक लँगोटी।।
कल्पक तेरी कविता से कब
दीन जनों का पेट भरा।
आँखे उनकी पीत वरण सी
स्वप्न अभी तक नहीं मरा।
रोटी ने फिर चाँद दिखाया
चाँद कभी दिखता रोटी।।
दग्ध हृदय में श्वांस धोकनी
खदबद खदबद करती है
बुझती लौ सा दीपक जलता
बाती तेल तरसती है
दृश्य देख अनदेखे करके
मानवता होती छोटी।।
झूठा करें दिखावा कुछ तो
हितचिंतक होते कितने
आश्वासन की डोरी थामे
दिवस बीतते हैं इतने
भाषण करने वालों की
बातें बस मोटी मोटी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुन्दर और गहर भाव ...
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
बात तो आपने बड़ी खरी-खरी कही है कुसुम जी !
ReplyDeleteपर भाषण देने वाले ढपोलशंख बड़े काम के होते हैं.
ये हमारा वोट लेने से पहले हमको रंगीन सपने दिखाते हैं, कुछ समय के लिए हमको स्वर्ग-लोक की सैर भी करा देते हैं.
हृदय से आभार आपका सर ।
Deleteसर कभी कभी हम भी आपकी तरह तथ्यों को काव्यात्मक ज़ामा पहनाने की कोशिश कर लेते हैं।
ढपोरशंख तो बिचारी जनता बनती है वो तो बिना चूल्हे रोटियां सेंक लेते हैं।
सादर।
वाह
ReplyDeleteसृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।
Deleteसादर।
कड़वा सत्य... खरी-खरी सराहनीय अभिव्यक्ति दी।
ReplyDeleteसस्नेह प्रणाम
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय से आभार आपका श्वेता मैं सदा अनुग्रहित रहूँगी।
Deleteऔर लिंक पर अपनी उपस्थिति सदैव देने की भरपूर कोशिश करूंगी।
सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक सृजन। प्रतीकों और बिंबों का प्रयोग कोई आपसे सीखे सखी। बेहतरीन रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteसखी आपकी स्नेहिल,बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत लाजवाब 🙏
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका सृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।
Deleteरोटी ने फिर चाँद दिखाया
ReplyDeleteचाँद कभी दिखता रोटी।।
वाह!!!!
कमाल का सृजन
सही कहा अभिलाषा जी ने प्रतीकों और बिंबों का प्रयोग कोई आपसे सीखे
लाजवाब बस लाजवाब🙏🙏
हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मुझे सदा संबल मिलता है ।
Deleteसस्नेह।
सही है, आज भी दुनिया में बहुत विषमता है, विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कुछ लोग रोटी के लिए तरसते हैं, मार्मिक रचना!
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अनिता जी, सृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।
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