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Thursday, 21 September 2023

अद्भुत प्रकृति


 गीतिका:

अद्भुत प्रकृति 

आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।


शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।


वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।

दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।


रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।

दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।


जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।

और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।


वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।

स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।


इलय/गतिहीन


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

16 comments:

  1. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।

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  2. अति.मनमोहक रचना दी शब्द शिल्प का तो जवाब नहीं। बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    सादर प्रणाम दी।
    सस्नेह।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका श्वेता।
      पाँच लिंकों पर आना सदा सुखद अहसास है।
      सादर सस्नेह।

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  3. Replies
    1. हृदय से आभार आपका पम्मी जी आपको देख मन प्रफुल्लित हुआ।

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  4. खूबसूरत रचना

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सृजन सार्थक हुआ।

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  5. Replies
    1. जी सस्नेह आभार आपका मधुलिका जी ब्लॉग पर सदैव स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  6. अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  7. सुन्दर शब्दचयन व कलात्मकता से परिपूर्ण

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  8. संस्कृत निष्ठ शब्दों का सौंदर्य देखने ही बनता है, सुंदर सृजन!

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  9. हृदय से आभार आपका अनिता जी, सृजन को ऊर्जा प्रदान करती सुंदर प्रतिक्रिया।
    सस्नेह ‌

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