Saturday, 7 October 2023

जीवन जैसे युद्ध


 जीवन जैसे युद्ध 


जीवन जैसे युद्ध बना है

सुख बैठा पर्वत चोटी।

क्या धोए अब किसे निचोड़े

तन बस एक लँगोटी।।


कल्पक तेरी कविता से कब

दीन जनों का पेट भरा।

आँखे उनकी पीत वरण सी

स्वप्न अभी तक नहीं मरा।

रोटी ने फिर चाँद दिखाया

चाँद कभी दिखता रोटी।।


दग्ध हृदय में श्वांस धोकनी

खदबद खदबद करती है

बुझती लौ सा दीपक जलता

बाती तेल तरसती है

दृश्य देख अनदेखे करके

मानवता होती छोटी।।


झूठा करें दिखावा कुछ तो

हितचिंतक होते कितने

आश्वासन की डोरी थामे 

दिवस बीतते हैं इतने

भाषण करने वालों की

बातें बस मोटी मोटी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर और गहर भाव ...

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    1. हृदय से आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  2. बात तो आपने बड़ी खरी-खरी कही है कुसुम जी !
    पर भाषण देने वाले ढपोलशंख बड़े काम के होते हैं.
    ये हमारा वोट लेने से पहले हमको रंगीन सपने दिखाते हैं, कुछ समय के लिए हमको स्वर्ग-लोक की सैर भी करा देते हैं.

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    1. हृदय से आभार आपका सर ।
      सर कभी कभी हम भी आपकी तरह तथ्यों को काव्यात्मक ज़ामा पहनाने की कोशिश कर लेते हैं।
      ढपोरशंख तो बिचारी जनता बनती है वो तो बिना चूल्हे रोटियां सेंक लेते हैं।
      सादर।

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    1. सृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।
      सादर।

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  4. कड़वा सत्य... खरी-खरी सराहनीय अभिव्यक्ति दी।
    सस्नेह प्रणाम
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. हृदय से आभार आपका श्वेता मैं सदा अनुग्रहित रहूँगी।
      और लिंक पर अपनी उपस्थिति सदैव देने की भरपूर कोशिश करूंगी।
      सस्नेह।

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  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक सृजन। प्रतीकों और बिंबों का प्रयोग कोई आपसे सीखे सखी। बेहतरीन रचना के लिए बधाई

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    1. सखी आपकी स्नेहिल,बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  6. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका सृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।

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  7. रोटी ने फिर चाँद दिखाया

    चाँद कभी दिखता रोटी।।
    वाह!!!!
    कमाल का सृजन
    सही कहा अभिलाषा जी ने प्रतीकों और बिंबों का प्रयोग कोई आपसे सीखे
    लाजवाब बस लाजवाब🙏🙏

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मुझे सदा संबल मिलता है ।
      सस्नेह।

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  8. सही है, आज भी दुनिया में बहुत विषमता है, विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कुछ लोग रोटी के लिए तरसते हैं, मार्मिक रचना!

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    1. हृदय से आभार आपका अनिता जी, सृजन सार्थक हुआ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से।

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