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Thursday, 30 November 2023

सूरज के बदलते रूप


 सूरज के बदलते रूप (सवैया छंद)


यामा जब आँचल नील धरे, सविता जलधाम समाकर सोता।

आँखे फिर खोल विहान हुई, हर मौसम रूप पृथक्कृत होता।

गर्मी तपता दृग खोल बड़े, पर ठंड लगे तन दे सब न्योता। 

वर्षा ऋतु में नभ मेघ घने, तब देह जली अपनी फिर धोता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

5 comments:

  1. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।

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  2. सवैया छंद !
    अद्भुत👌👌👌
    नमन आपकी रचनात्मक को🙏🙏🙏

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