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Tuesday, 19 December 2023

स्वार्थी मतियाँ

स्वार्थी मतियाँ


पौढ़ शिखर के तुंग 

खरी थी पावन निर्मला

सिंधु से मिली गंग

बनी खारी सकल अमला


गोद भरा अब गाद

हमारी मूढ़ मतियों ने

सदा किया था गर्व

अनोखी वीर सतियों ने

बन बहती वरदान

कभी था रूप भी उजला।।


मनुज बड़ा ही ठूंठ 

पहनकर स्वार्थ की पट्टी

खेले भारी खेल

उथलकर काल की घट्टी

दलदल बनाता और

निशाना भी बने पहला।।


गहरे हैं अवगाह

भयानक आपदा होगी

होंगे सकल अनिष्ट 

निरपराधी भुगत भोगी

पिघल रहे मुख ज्वाल

पत्थर हृदय नहीं दहला।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

7 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।

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  2. बहुत सुन्दर काव्यमय अभिव्यक्ति ...

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।

      Delete
  3. विमर्शपूर्ण रचना।
    सुंदर शब्द विन्यास।

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सृजन सार्थक हुआ।

      Delete
  4. गहरे हैं अवगाह

    भयानक आपदा होगी

    होंगे सकल अनिष्ट

    निरपराधी भुगत भोगी

    पिघल रहे मुख ज्वाल

    पत्थर हृदय नहीं दहला।।

    वाह!!!!
    कमाल का सृजन
    प्राकृतिक आपदाओं में मनुष्य की अनदेखियां ...
    अद्भुत एवं लाजवाब ।

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