अनुशीलन माँ शारदे
हाथ में कूची उठाई
आ गये माँ तव शरण
है कला माध्यम उत्तम
कोटि करते हैं भरण।
बान अनुशीलन रहे तो
शब्द बनते शक्ति है
नित निखरते व्यंजना से
फिर सृजन ही भक्ति है
मर्म लेखन बिम्ब बोले
नित सिखाये व्याकरण।।
लेख प्रांजल हो प्रभावी
मोद आत्मा में जगे
पढ़ प्रमादी जाग जाए
और सब आलस भगे
लेखनी नव शक्ति भर दो
नित पखारें हैं चरण।
वेद हो या शास्त्र पावन
अक्षरों में हैं सजे
थात है इतिहास भी जो
प्रज्ञ पण्डित भी भजे
लेख बिन सब भाव सूने
कर रहा है युग वरण।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुन्दर रचना लाड़ो
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भाव् पूर्ण रचना ... नमन माँ के चरणों में ...
ReplyDeleteमृदुल मनोहर काव्य कृति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है जी visit this also
ReplyDeleteबान अनुशीलन रहे तो
ReplyDeleteशब्द बनते शक्ति है
नित निखरते व्यंजना से
फिर सृजन ही भक्ति है
मर्म लेखन बिम्ब बोले
नित सिखाये व्याकरण।।
वाह!!!!
कमाल का लेखन
सृजन ही भक्ति 🙏🙏🙏