प्रकृति की कलाएं
ओ गगन के चँद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।
ओ अक्षूण भास्कर, मै तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ आच्छादित, मैं तेरी प्रतिछाया हूं ।
ओ घटा के मेघ शयामल, मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
ओ सागर अन्तर तल गहरे, मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मैं तेरा अगाध उत्थान हूं।
ओ मधुबन के हर सिंगार, मैं तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है, मैं निर्मल बासंती "बयार"हूं।
कुसुम कोठारी।
ओ गगन के चँद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।
ओ अक्षूण भास्कर, मै तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ आच्छादित, मैं तेरी प्रतिछाया हूं ।
ओ घटा के मेघ शयामल, मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
ओ सागर अन्तर तल गहरे, मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मैं तेरा अगाध उत्थान हूं।
ओ मधुबन के हर सिंगार, मैं तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है, मैं निर्मल बासंती "बयार"हूं।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०१-०२-२०२०) को "शब्द-सृजन"-६ (चर्चा अंक - ३५९८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
बेहद लाजवाब।
ReplyDeleteक्या कहने।। वाह।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
ओ मधुबन के हर सिंगार, मैं तेरा रंग गुलनार हूं,
ReplyDeleteतूं मोहनी माया सा है, मैं निर्मल बासंती "बयार"हूं
बहुत ही सुंदर सुंदर ,लाज़बाब सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको
ओ सागर अन्तर तल गहरे, मैं तेरा विस्तार हूं,
ReplyDeleteतूं घोर रोर प्रभंजन है, मैं तेरा अगाध उत्थान हूं।
वाह!!!!
क्या बात....
बहुत ही लाजवाब स।जन।