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Thursday, 30 January 2020

विधु का रूप मनोहर

विधु का रूप मनोहर

ये रजत बूटों से सुसज्जित नीलम सा आकाश,
ज्यों निलांचल पर हिरकणिका जडी चांदी तारों में,

फूलों  ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के,
आई चंद्रिका इठलाती पसरी लतिका के बिस्तर में।

विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है,
भिगोता सरसी हरित धरा को निज चपल चाँदनी में ।

स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में ।

ये रात है या सौगात है अनुपम  कोई कुदरत की,
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे  विश्व आंगन में।।

              कुसुम कोठारी ।

4 comments:

  1. सदैव की भांति हृदय को आनंदलोक की अनुभूति कराने वाला एक और सृजन...
    नमन दी।

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  2. .. अब बहुत अच्छा लिखती हैं दी.. मन भाव विभोर हो उठता है आपकी रचनाओं का रस वादन करने के बाद बहुत ही अच्छी कविता लिखी आपने

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  3. ये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की,
    जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में।।
    ... आपकी रचनाएँ परिपक्वता की नई इमारतें लिखती जा रही हैं । शानदार लेखन हेतु साधुवाद आदरणीया।

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  4. स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
    जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में । बेहद खूबसूरत रचना सखी

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