कुसुम की कुण्डलियाँ
२९ विषय-अनुपम
महकी मँजरी बाग में , छाया सरस स्वरूप।
किल्लोल करे सूर्य से , बिखरा मोहक रूप ।
बिखरा मोहक रूप , डाल बूंटो से निखरी ।
डोली नाची साथ , पवन सुरभित हो बिखरी ।
कहे कुसुम ये बात , गूंज मधुकर की चहकी ।
मँजरी हुई निहाल ,रीझ सौरभ से महकी ।।
३० विषय-धड़कन
पावन ये शृंगार है , धड़कन का संगीत ।
बूझे कोई प्यार से , माँ ही ऐसा गीत ।
माँ ही ऐसा गीत , कंठ में मधुर समाई ।
जीवन का आधार , पूर्व भव पुण्य कमाई ।
कहे कुसुम सँग प्रीत , झूम कर नाचे सावन ।
धात्री सम है कौन , पूर्ण पवित्र औ पावन ।।
३१ विषय - वीणा
वीणा तू तो नाम की , सब तारों का काम ।
काया ज्यों बिन प्राण के ,धरी रहे निष्काम ।
धरी रहे निष्काम , नही कुछ सुर है तुझ में ।
नाम मधुरिमा झूठ , सत्व साधन है मुझ में ।
सुनो कुसुम की बात ,बात सन्मति से गुनणा ।
पड़े तार को चोट , कहें मृदु माया वीणा।।
३२ विषय-नैतिक
गहरे इसके भाव हैं ,अर्थ समेटे गूढ़ ।
नैतिक गहरा शब्द है , समझ न पाए मूढ़ ।
समझ न पाए मूढ़ , हँसी में ठोकर मारी ।
करता भ्रष्टाचार , छोड़ नैतिकता सारी ।
कहे कुसुम ये बात , रहे प्रज्ञा के पहरे ।
सन्मति सद्व्यवहार , रखो अंतस में गहरे ।।
कुसुम कोठारी।
२९ विषय-अनुपम
महकी मँजरी बाग में , छाया सरस स्वरूप।
किल्लोल करे सूर्य से , बिखरा मोहक रूप ।
बिखरा मोहक रूप , डाल बूंटो से निखरी ।
डोली नाची साथ , पवन सुरभित हो बिखरी ।
कहे कुसुम ये बात , गूंज मधुकर की चहकी ।
मँजरी हुई निहाल ,रीझ सौरभ से महकी ।।
३० विषय-धड़कन
पावन ये शृंगार है , धड़कन का संगीत ।
बूझे कोई प्यार से , माँ ही ऐसा गीत ।
माँ ही ऐसा गीत , कंठ में मधुर समाई ।
जीवन का आधार , पूर्व भव पुण्य कमाई ।
कहे कुसुम सँग प्रीत , झूम कर नाचे सावन ।
धात्री सम है कौन , पूर्ण पवित्र औ पावन ।।
३१ विषय - वीणा
वीणा तू तो नाम की , सब तारों का काम ।
काया ज्यों बिन प्राण के ,धरी रहे निष्काम ।
धरी रहे निष्काम , नही कुछ सुर है तुझ में ।
नाम मधुरिमा झूठ , सत्व साधन है मुझ में ।
सुनो कुसुम की बात ,बात सन्मति से गुनणा ।
पड़े तार को चोट , कहें मृदु माया वीणा।।
३२ विषय-नैतिक
गहरे इसके भाव हैं ,अर्थ समेटे गूढ़ ।
नैतिक गहरा शब्द है , समझ न पाए मूढ़ ।
समझ न पाए मूढ़ , हँसी में ठोकर मारी ।
करता भ्रष्टाचार , छोड़ नैतिकता सारी ।
कहे कुसुम ये बात , रहे प्रज्ञा के पहरे ।
सन्मति सद्व्यवहार , रखो अंतस में गहरे ।।
कुसुम कोठारी।
पड़े तार को चोट , कहें मृदु माया वीणा।।
ReplyDeleteकुसुम दी आपने तो कुछ इस अंदाज में सत्य का चित्रण किया, मानों मैं कबीर को पढ़ रहा हूँ।