लहरा साँझ का आँचल श्याम
जली बाती ,खिले सपने।।
भाल निशा के चाँद चमकता
उपवन का कोना महका
खिली-खिली थी रजत चाँदनी
तारों का सुंदर डेरा
आशा पास सभी हो अपने
जली बाती खिले सपने।।
जीवन हो मधुबन सा सुंदर
भ्रमर गूँजाते चहुँ दिशा
गूँजे कोकिल कूक मनोहर
कमल खिले ताल-तलैया
मधुरिमा सौरभ लगी बहने
जली बाती खिले सपने।।
आँचल में तारे अब भरके
चारों औ उजियारे थे
क्षितिज कोर सिंदूर भरे से
मन मयूर भी नाचे थे
सतरंगी फाग लगा रचने
जली बाती खिले सपने ।।
लहरा साँझ का आँचल श्याम
जली बाती ,खिले सपने।।
कुसुम कोठारी।
आपकी सकारात्मक रचनाएं सदैव मन लुभाती हैं, प्रणाम दी
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(८-०१-२०२०) को "जली बाती खिले सपने"(चर्चा अंक - ३५७४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।
ReplyDeleteआशा पास सभी हो अपने
ReplyDeleteजली बाती खिले सपने
सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत ,मनभावन रचना ,सादर नमन आपको
वाह ! नोन-तेल-लकड़ी की चिंता, नफ़रत की आंधी, कुर्सी हड़पने का जूनून और ख़ुदगर्ज़ी के माहौल के बीच, पन्त जी के प्रकृति-चित्रण को पुनर्जीवित करना, एक एक सराहनीय प्रयास है !
ReplyDeleteआदरणीया कुसुम जी, प्रणाम एक बार पुनः मैं आपके ब्लॉग पर आया हूँ। आपकी इस सुन्दर और सार्थक रचना का वाचन किया जो कि सत्य में एक चमत्कृत लेखनी का परिणाम है और निसंदेह स्तरीय है परन्तु खेद है मुझे उन मिथ्या टिप्पणियों से जिन्होंने कभी आपकी कुछ मामूली त्रुटियों को बताया नहीं। आज मैं आपकी त्रुटि नहीं बताऊँगा केवल इतना ही कहूँगा आप इसे स्वयं बिना ग़फ़लत में पड़े सुधार लें ! इसे अनुनय निवेदन समझियेगा न कि मेरा अहंकार ! और निसंदेह आपकी लेखनी उत्तम और स्तरीय है ! अंत में यही कहूँगा, कुछ वाकचतुर आपकी रचना प्रत्येक दिन देखते हैं और ख़ूब हँसते हैं परन्तु आपकी त्रुटियों को कभी नहीं बताते कि कहीं आप उनसे उनकी उत्तम लेखिका/लेखक होने का ख़िताब न छीन लें ! अतः वे आपकी झूठी वाह-वाही करने से भी गुरेज़ नहीं करते ! यह इस आभासी दुनिया का कोरा सच है। हो सकता है आप मेरे इस सन्देश को यथाशीघ्र मिटा दें ! शेष आप स्वयं बुद्धिमान हैं। अंत में मैं यही कहूँगा "व्यक्ति पैदा होते ही महान नहीं बनता, वर्षों गुज़र जाते हैं इस सफर में" कठोर शब्दों हेतु क्षमा। सादर 'एकलव्य'
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ReplyDeleteकुसुम जी के लेखन भाव बहुत सुकोमल होते हैं । उनकी सृजनशीलता की कायल हूँ मैं । सीखने के लिए हमें एक छोटे शिशु से भी मिलता है कुसुम दी ब्लॉग जगत में अनवरत लिख रहीं हैं । मात्रा त्रुटि हम सब से हो जाती हैं । यदि ध्यान चला जाए तो विनम्रतापूर्वक भी कह सकते हैं । किसी के ब्लॉग पर आकर कठोरता पूर्वक लिखना व्यक्ति को आहत करने जैसा है । दी के लेखन और योग्यता को नमन 🙏
ReplyDeleteसुंदर साहित्यिक रचना आदरणीया दीदी.
ReplyDeleteसभी बंद मनमोहक हैं.
टंकण त्रुटियों के चलते भाव नहीं बिगड़ते. आजकल विशुद्ध मानक हिंदी का स्वरुप सीमित दायरों में सिमट गया है.आपका आभार आदरणीय एकलव्य जी शुद्ध हिंदी की सराहनीय पहल हेतु. हाइफन के अलवा मुझे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा.
सादर