जोखिम की मानिंद हो रही बसर है ज़िंदगी ,
देखो तो खूबसूरत सा एक भँवर है ज़िदगी ।।
खिल के मिलना है धूल में किस्म-ए-नक्बत,
जी लो जी भर माना ख़तरे की डगर है ज़िंदगी।।
बरसता रहा आब-ए-चश्म रात भर बेज़ार ,
भीगी हुई चांदनी का शजर है ज़िंदगी ।।
मिलने को तो मिलती रहे दुआ-ए-हयात रौशन ,
उसका करम है उसको नज़र है ज़िंदगी ।।
माना डूबती है कश्तियां किनारों पर भी ,
डाल दो लहरों पर जोखिम का सफर है जिंदगी ।।
कुसुम कोठारी ।
नक्बत = दुर्भाग्य, विपदा
आब ए चश्म =आंसू
शजर =पेड़
देखो तो खूबसूरत सा एक भँवर है ज़िदगी ।।
खिल के मिलना है धूल में किस्म-ए-नक्बत,
जी लो जी भर माना ख़तरे की डगर है ज़िंदगी।।
बरसता रहा आब-ए-चश्म रात भर बेज़ार ,
भीगी हुई चांदनी का शजर है ज़िंदगी ।।
मिलने को तो मिलती रहे दुआ-ए-हयात रौशन ,
उसका करम है उसको नज़र है ज़िंदगी ।।
माना डूबती है कश्तियां किनारों पर भी ,
डाल दो लहरों पर जोखिम का सफर है जिंदगी ।।
कुसुम कोठारी ।
नक्बत = दुर्भाग्य, विपदा
आब ए चश्म =आंसू
शजर =पेड़
वाह !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल सृजित हुई है आपकी क़लम से. नाज़ुक जज़्बात को बड़ी ख़ूबसूरती से शब्दों में पिरोया है. हृदयस्पर्शी सृजन की ख़ूबियाँ समेटे हुए शानदार अभिव्यक्ति.
बहुत-बहुत बधाई आदरणीया दीदी.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५- ०१-२०२० ) को "माँ बिन मायका"(चर्चा अंक-३५७१) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत उम्दा
वाह!कुसुम जी ,लाजवाब!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
खिल के मिलना है धूल में किस्म-ए-नक्बत,
ReplyDeleteजी लो जी भर माना ख़तरे की डगर है ज़िंदगी।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब गजल
एक से बढ़कर एक शेर
वाह बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति कुसुम जी !सादर नमस्ते।
ReplyDeleteमाना डूबती है कश्तियां किनारों पर भी ,
ReplyDeleteडाल दो लहरों पर जोखिम का सफर है जिंदगी"
अंतरात्मा को प्रभावित करती रचना।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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