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Thursday, 2 January 2020

लो आया नया विहान

लो आया नया विहान
प्रकृति लिये खड़ी कितने उपहार,
चाहो तो समेट लो अपनी झोली में
अंखियों की पलकों में ,
दिल की कोर में ,साँसों की सरगम में ।
लो आया नया विहान.…

देखो उषा की सुनहरी लाली कितनी मन भावन ,
उगता सूरज ,ओस की शीतलता
पंक्षियों की चहक ,फूलों की महक
भर लो अंतर तक ,कलियों की चटक ।
लो आया नया विहान ।

कोयल की कुहूक मानो कानो में मिश्री घोलती ,
भंवरे की गुंजार ,नदियों की कल-कल,
सागर का प्रभंजन ,लहरों की प्रतिबद्धता
जो कर्म का पाठ पढाती बंधन में रह के भी ।
लो आया नया विहान।

झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता ,
सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत ,
नीड़ को लौटते विहंग ,अस्त होता भानु ,
निशा के दामन का अंधेरा कहता
लो आया नया विहान .....

गगन में इठलाते मंयक की उजास भरती रोशनी ,
किरणों का चपलता से बिखरना ,
तारों की टिम - टिम ,दूर धरती गगन का मिलना
बादलों की हवा में उडती डोलियाँ ।
लो आया नया विहान ।

बरसता सावन ,मेघों का मंडराना,
तितलियों  की सुंदरता,न जाने क्या-क्या?
 जिनका कोई मूल्य नही चुकाना
पर जो अनमोल  है' अभिराम भी ।
लो आया नया विहान।।

            कुसुम कोठारी ।

7 comments:

  1. वाहः बहुत ही उम्दा

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०१-२०२०) को "शब्द-सृजन"- २ (चर्चा अंक-३५८०) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….

    अनीता सैनी

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  4. नवल विहान!!!
    बहुत ही खूबसूरत लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  5. विहान पर प्रकृति में घटते घटनाक्रम और उसमे प्रभावित होते परिवेश को काव्य-सौंदर्य की मोहक पंखुड़ियों से सजाया है. आपका कल्पनालोक बहुत विस्तृत है आदरणीया दीदी.
    सादर प्रणाम.

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  6. वाह दी अति मनमोहक शब्दावली सुंदर दृश्य संयोजन और सकारात्मक भावों से गूँथी बेहद मधुर रचना।
    सादर।

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