अँधा बांटे रेवड़ी
सर्वेश्वर दयाल पिछले चार साल से कमर कस कर नगरपालिका में ,जन भूमि आवंटन (गरीब तबके के लिए जिनके पास रहने भर को घर नहीं, खेती की जमीन तो दूर की बात ) के लिए ऊपरी संस्थाओं में अर्जी देना चक्कर लगाना नेताओं से बातचीत करना, यहां तक जी हजूरी भी करने में कोई परहेज नही था।
शाम को चौपाल पर सभी जरुरत मंद आ जुटते थे और सर्वेश्वर दयाल जी की खूब वाह वाही होती। उनके इस निस्वार्थ सेवा के लिए सभी गदगद हो उन्हें साधुवाद देते और देवता रूप समझ उनके पांव छूते थे।
आखिर उनकी लगन रंग लाई।ऊपर से आदेश आ गये कि 25 अर्जी स्वीकारी जाएगी ,सभी जरूरत मंद गवाह के हस्ताक्षर के साथ अपनी अर्जियां डाल दें।
सर्वेश्वर जी ने बढ़ चढ़ कर सभी को अर्जी लिखने में मदद की ।
आज गाँव में कई पक्के मकान दिखने लगे ,कुछ छोटे मकान बड़े हो गये ,छोटे खेत बड़े हो गये ,
आज सर्वेश्वर दयाल का सारा कुनबा गाँव में सबसे प्रतिष्ठित और सबसे स्थापित है ।
आखिर सर्वेश्वर दयाल ने अपनी अथक मेहनत से अपने पच्चीस सम्बंधियों को (जिनमें से कई दूसरे गाँवो से भी बुलाए गये थे)
जमीन दिलवा दी किसी को खेती की और किसी को घर की ।
जो साँझ ढ़ले सर्वेश्वर बाबू के गुणगान करते थे, आज कल माथा पीटते हुए एक आलाप लिए घूम रहे हैं ,आप भी गा सकते हैं "अंँधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय"।
सर्वेश्वर दयाल पिछले चार साल से कमर कस कर नगरपालिका में ,जन भूमि आवंटन (गरीब तबके के लिए जिनके पास रहने भर को घर नहीं, खेती की जमीन तो दूर की बात ) के लिए ऊपरी संस्थाओं में अर्जी देना चक्कर लगाना नेताओं से बातचीत करना, यहां तक जी हजूरी भी करने में कोई परहेज नही था।
शाम को चौपाल पर सभी जरुरत मंद आ जुटते थे और सर्वेश्वर दयाल जी की खूब वाह वाही होती। उनके इस निस्वार्थ सेवा के लिए सभी गदगद हो उन्हें साधुवाद देते और देवता रूप समझ उनके पांव छूते थे।
आखिर उनकी लगन रंग लाई।ऊपर से आदेश आ गये कि 25 अर्जी स्वीकारी जाएगी ,सभी जरूरत मंद गवाह के हस्ताक्षर के साथ अपनी अर्जियां डाल दें।
सर्वेश्वर जी ने बढ़ चढ़ कर सभी को अर्जी लिखने में मदद की ।
आज गाँव में कई पक्के मकान दिखने लगे ,कुछ छोटे मकान बड़े हो गये ,छोटे खेत बड़े हो गये ,
आज सर्वेश्वर दयाल का सारा कुनबा गाँव में सबसे प्रतिष्ठित और सबसे स्थापित है ।
आखिर सर्वेश्वर दयाल ने अपनी अथक मेहनत से अपने पच्चीस सम्बंधियों को (जिनमें से कई दूसरे गाँवो से भी बुलाए गये थे)
जमीन दिलवा दी किसी को खेती की और किसी को घर की ।
जो साँझ ढ़ले सर्वेश्वर बाबू के गुणगान करते थे, आज कल माथा पीटते हुए एक आलाप लिए घूम रहे हैं ,आप भी गा सकते हैं "अंँधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय"।
व्वाहहहहह....
ReplyDeleteरोचक लघु कथा जो समाज का चित्र दिखाती है। सरकारी काम ज्यादातर ऐसे ही होते हैं। आभार।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन 👌
ReplyDeleteबेहद उम्दा ...लाजवाब सृजन कुसुम जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
सत्य को दर्शाता बेहतरीन लघु कथा ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसरकारी सम्पत्ति का आबण्टन सिर्फ अपनों में ही किया जा रहा है आम जनता मुँह लटकाए देखती रह जाती है....
ReplyDeleteसत्य उजागर करती बहुत ही सुन्दर लघुकथा।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२० जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह! प्रेरणादायी...
ReplyDeleteबेहतरीन लघु कथा
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