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Wednesday, 8 January 2020

खाके चोट पत्थरों की

खाके चोट पत्थरों की

गिरे हैं पहाड़ों से संभल जायेंगे तो क़रार आयेगा।
खाके चोट पत्थरों की संवर जायेंगे तो क़रार आयेगा।

नीले पहाडों से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
झरने बन बह निकले कल-कल तो क़रार आयेगा।

कहीं घोर शोर ऊंचे नीचे, फूहार मोती सी नशीली ,
विकल बेचैन  ,मिलेगें सागर से तो क़रार आयेगा।

जिससे मिलने की लिये गुज़ारिश चले अलबेले
पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो क़रार आयेगा।

सफ़र पर निकले दीवानें मस्ताने गुज़र ही जायेंगे ,
लगाया जो दाव वो जीत जायेंगे तो क़रार आयेगा।

इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
जा मिलेगें ये जल धारे समन्दर से तो क़रार आयेगा।

                 कुसुम कोठरी।

14 comments:

  1. बेहद लाजवाब रचना 👌👌

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  2. नीले पहाडों से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
    झरने बन बह निकले कल-कल तो क़रार आयेगा।
    अत्यन्त सुन्दर सृजन ।

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  3. बढ़िया

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  4. वाह आदरणीया दीदी जी वाह... कहना पड़ेगा कुछ तो कमाल है आपकी पंक्तियों में जो इतनी सहजता से आप बड़ी से बड़ी सीख दे जाती हैं। सत्य है.... संघर्ष ही सुख की राह है। वाह दीदी जी बेहद उम्दा पंक्तियाँ 👌
    सादर प्रणाम 🙏 शुभ संध्या

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-01-2019 ) को "विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक - 3576) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    अनीता लागुरी"अनु"

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  6. खाकर चोट पत्थरों की संभलेंगे तो करार आएगा ,
    सुन्दर प्रस्तुति

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  7. जिससे मिलने की लिये गुज़ारिश चले अलबेले
    पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो क़रार आयेगा।

    बेहतरीन सृजन ,सादर नमन कुसुम जी

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. वाह सखी बेहतरीन रचना।सादर नमन।

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  10. शुभप्रभात, चोट जैसी नकारात्मक विषय पर भी आपने विस्मयकारी रचना लिख डाली हैं । मेरी कामना है कि यह प्रस्फुटन बनी रहे और हमारी हिन्दी दिनानुदिन समृद्ध होती रहे। हलचल के मंच को नमन करते हुए आपका भी अभिनंदन करता हूँ ।

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  11. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया कुसुम दीदी जी
    सादर

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  12. वाह!कुसुम जी ,क्या बात है !बेहतरीन सृजन ।

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  13. वाह!!!
    बेहद लाजवाब
    नीले पहाडों से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
    झरने बन बह निकले कल-कल तो क़रार आयेगा।

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