परिवर्तित जलवायु देखकर,
आज निहत्थे खड़े सभी ।
जो मेघों का सँतुलन बिगड़ा
नदियां हो गई कृष काय
सूरज तपता ब्रह्म तेज सा
धरती पुरी जलती जाय ।
धधक-धधक कर जलते उपवन
कंक्रीटों का जाल तभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।
हिमनद सारे पिघल रहे हैं
दरक रहे हैं धरणीधर
सागर बंधन तोड़ रहे हैं
नीर स्तर भी हुआ अधर ।
क्या होगा जाने जग जीवन
संकट में है जान अभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।
बेमौसम बरसातें ओले
प्रलयंकारी बाढ़ बढ़ी
खेती बंजर सूखी धरती
असंतुलन की धार चढ़ी।
पर्यावरण की हानि होती
सुधरे ना हालात कभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आज निहत्थे खड़े सभी ।
जो मेघों का सँतुलन बिगड़ा
नदियां हो गई कृष काय
सूरज तपता ब्रह्म तेज सा
धरती पुरी जलती जाय ।
धधक-धधक कर जलते उपवन
कंक्रीटों का जाल तभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।
हिमनद सारे पिघल रहे हैं
दरक रहे हैं धरणीधर
सागर बंधन तोड़ रहे हैं
नीर स्तर भी हुआ अधर ।
क्या होगा जाने जग जीवन
संकट में है जान अभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।
बेमौसम बरसातें ओले
प्रलयंकारी बाढ़ बढ़ी
खेती बंजर सूखी धरती
असंतुलन की धार चढ़ी।
पर्यावरण की हानि होती
सुधरे ना हालात कभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-01-2020) को " सूर्य भी शीत उगलता है"(चर्चा अंक - 3583) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता 'अनु '
बहुत सा आभार प्रिय अनु जी चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना बहुत सुखद है ।
Deleteसादर।
जी सादर आभार आपका। मुखरित मौन पर अपनी रचना देखना सुखद है मेरे लिए।
ReplyDeleteबेमौसम बरसातें ओले
ReplyDeleteप्रलयंकारी बाढ़ बढ़ी
खेती बंजर सूखी धरती
असंतुलन की धार चढ़ी।
पर्यावरण की हानि होती
सुधरे ना हालात कभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी ।।
बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी
बहुत सुंदर और प्रभावी रचना
ReplyDeleteबधाई
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteक्या होगा जाने जग जीवन
ReplyDeleteसंकट में है जान अभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।
सही कहा पर्यावरण असन्तुलन के कारण ही आज विश्व महामारी के सामने भी निहत्था ही खड़ा है...
शानदार नवगीत ।
पर्यावरण की हानि होती
ReplyDeleteसुधरे ना हालात कभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी ।।...
कटु सत्य
आज मनुष्य असहाय होकर रह गया है... जब तक हम अपनी गलतियों से कुछ सबक नहीं लेंगे तब तक पछतावे के सिवा कुछ हाथ न लगेगा.