तिमिर के पार जिजीविषा
दूर तिमिर के पार
एक आलौकिक
ज्योति-पुंज है,
एक ऐसा उजाला,
जो हर तमस पर भारी है
अनंत सागर में फसी
नैया हिचकोले खाती है,
दूर-दूर तक कहीं
प्रतीर नजर नही आते हैं,
प्यासा नाविक
नीर कीबूंद को तरसता है,
घटाऐं घनघोर,
पानी अब बरसने को
विकल है ,
अभी सैकत से अधिक
अम्बू की चाहत है,
पानी न मिला तो प्राणों का
अविकल गमन है,
प्राण रहे तो किनारे
जाने का युद्ध अनवरत है,
लो बरस गई बदरी
सुधा बूंद सी शरीर में दौड़ी है ,
प्रकाश की और जाने की
अदम्य प्यास जगी है ,
हाथों की स्थिलता में
अब ऊर्जा का संचार है,
समझ नही आता
प्यास बड़ी थी या
जीवन बड़ा है,
तृषा बुझते ही
फिर जीवन के लिये
संग्राम शुरू है,
आखिर वो तमिस्त्रा के
उस पार कौन सी प्रभा है ,
ये कैसी जिजीविषा है।
कुसुम कोठारी।
दूर तिमिर के पार
एक आलौकिक
ज्योति-पुंज है,
एक ऐसा उजाला,
जो हर तमस पर भारी है
अनंत सागर में फसी
नैया हिचकोले खाती है,
दूर-दूर तक कहीं
प्रतीर नजर नही आते हैं,
प्यासा नाविक
नीर कीबूंद को तरसता है,
घटाऐं घनघोर,
पानी अब बरसने को
विकल है ,
अभी सैकत से अधिक
अम्बू की चाहत है,
पानी न मिला तो प्राणों का
अविकल गमन है,
प्राण रहे तो किनारे
जाने का युद्ध अनवरत है,
लो बरस गई बदरी
सुधा बूंद सी शरीर में दौड़ी है ,
प्रकाश की और जाने की
अदम्य प्यास जगी है ,
हाथों की स्थिलता में
अब ऊर्जा का संचार है,
समझ नही आता
प्यास बड़ी थी या
जीवन बड़ा है,
तृषा बुझते ही
फिर जीवन के लिये
संग्राम शुरू है,
आखिर वो तमिस्त्रा के
उस पार कौन सी प्रभा है ,
ये कैसी जिजीविषा है।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
समझ नही आता
ReplyDeleteप्यास बड़ी थी या
जीवन बड़ा है,
तृषा बुझते ही
फिर जीवन के लिये
संग्राम शुरू है,
उम्र भर ये जीवन संग्राम चलता ही रहता हैं जब हारते हैं तो फिर कोई जिजीविषा जीतने को मजबूर करती है
वाह!!!
लाजवाब सृजन
आखिर वो तमिस्त्रा के
ReplyDeleteउस पार कौन सी प्रभा है
इसी खोज का नाम तो जीवन हैं ,अति सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार कुसुम जी
तिमिर की वीरानियों के
ReplyDeleteउस पार रोशनी के गाँव
जुगनुओं की टोलियों संग
चाँदनी की आस नन्हे पाँव
--–-
बहुत सुंदर शब्द संयोजन और
अति प्रेरक सकारात्मक सृजन दी।
सादर।
लो बरस गई बदरी
ReplyDeleteसुधा बूंद सी शरीर में दौड़ी है ,
प्रकाश की और जाने की
अदम्य प्यास जगी है ,
हाथों की स्थिलता में
अब ऊर्जा का संचार है, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी